Sunday, September 6, 2009

खुद पर यकीन आते सुकूं उसको मिल गया

या मैं बदल गया हूं या फिर वो बदल गया ।
से मेरा सोच मुझसे भी आगे निकल गया ।।

जब तक था वो नादान तो गफ़लत में मै भी था ,
जब उसके होश सम्हले तो मैं भी सम्हल गया ।।

कल उंगलियां पकड़ के भी गिरता था बार बार ,
ये वो ही है जो हाथ लगाते उछल गया ।।

पहले तो मुंह में रखके चबाता था सोजोगम ,
इस बार वो तमाम रंजिशें निगल गया ।।

अब पूछता नहीं है सुकूं कैसे आएगा ,
खुद पै यक़ीन आते सुकूं उसको मिल गया ।।

वो पौधे जो ‘ज़ाहिद‘ ने लगाए थे रेत पर ,
उनमें से एक पौधा बड़ा होके फल गया ।।
120496

Wednesday, September 2, 2009

हैं हाज़रीन ग़ज़लें

इनसे न कुछ छुपा है ये हैं ज़हीन ग़ज़लें
पढ़ना मुसीबतों में मेरी हसीन ग़ज़लें ।।

वो सौ की एक कहती लाखों में कह के देखो
अरबों बरस जियेंगी सब बेहतरीन ग़ज़लें ।।

जब जब भी कहना चाहा -रखिये ख़याल अपना
चुपचाप पेश कर दीं ताज़ातरीन ग़ज़लें ।।

उनकी गवाह हैं ये ,जो नेक हैं ,दुखी हैं ,
सब साथ छोड़ दें पर हैं हाज़रीन ग़ज़लें ।।

हर वक्त घूमती हैं ‘ज़ाहिद‘ के आगे पीछे
सब दिलफरेब ग़ज़लें सब माहज़बीन ग़ज़लें ।।
100496