कैसे कैसे दौर से गुज़रा हूं मैं
भरतनाट्यम्, कुचिपुड़ी, मुजरा हूं मैं।
ज़िन्दगी के भवन में चढ़ते हुए
मौत की सौ सीढ़ियां उतरा हूं मैं।
थी मिली सूरत भली , सीरत भली
गदिर्शों के दांत का कुतरा हूं मैं।
कुछ गली गंदी मिलीं, कुछ पाक साफ़
पैरहन मत देखिए सुतरा हूं मैं।
पल फले , फसलें पकीं ,‘ज़ाहिद’ मगर
खेत में झूठा खड़ा पुतरा हूं मैं।
दि. 08.04.10
सुतरा - पवित्र , स्वच्छ ,
पुतरा - पुतला , बिजूका ,
Monday, May 24, 2010
Saturday, May 8, 2010
जिन्दगी खटनी
कुछ दोस्तों को नयी पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार था इसलिए इसे सब्र से पढ़ें
सिल-बटे पर है हिना-सी हर खुशी बटनी।
उम्र मेरी जान ! वर्ना यूं नहीं कटनी ।।
जिन्दगी भर सब्र के पत्थर रखो दिल में,
बदगुमां ये खाइयां ऐसे नहीं पटनी।।
यह दिया संतोष का यूं ही नहीं जलता ,
रेशा रेशा सांस से बत्ती पड़ी अटनी।।
है खिंची रस्सी हवा में आजमाइश की ,
हाथ खोले चल रही है वक्त की नटनी ।।
वह जो परदे से लगी चिपकी खड़ी दिखती ,
आस की ज़िद से भरी है , वह नहीं हटनी।।
घर में सबके मुंह में वह पानी बनी फिरती ,
चटपटी ,तीखी ,सलोनी आम की चटनी।।
आंख भर उसको कभी ‘ज़ाहिद’ नहीं देखा ,
एक पल ठहरी नहीं यह जिन्दगी खटनी।।
1 मई 2010
हिना: मेंहदी ,/ बटनी: बांटनी ,
पटनी: पाट दी जानी ,/ बदगुमां-मिथ्याभिमान ,
अटनी: आटना ,अटना, धागे को गुंथना,
खटनी: खटनेवाली,खटना शब्द से बनी संज्ञा,
रेशा रेशा >रेशः रेशः = एक एक तार,फाइबर
सिल-बटे पर है हिना-सी हर खुशी बटनी।
उम्र मेरी जान ! वर्ना यूं नहीं कटनी ।।
जिन्दगी भर सब्र के पत्थर रखो दिल में,
बदगुमां ये खाइयां ऐसे नहीं पटनी।।
यह दिया संतोष का यूं ही नहीं जलता ,
रेशा रेशा सांस से बत्ती पड़ी अटनी।।
है खिंची रस्सी हवा में आजमाइश की ,
हाथ खोले चल रही है वक्त की नटनी ।।
वह जो परदे से लगी चिपकी खड़ी दिखती ,
आस की ज़िद से भरी है , वह नहीं हटनी।।
घर में सबके मुंह में वह पानी बनी फिरती ,
चटपटी ,तीखी ,सलोनी आम की चटनी।।
आंख भर उसको कभी ‘ज़ाहिद’ नहीं देखा ,
एक पल ठहरी नहीं यह जिन्दगी खटनी।।
1 मई 2010
हिना: मेंहदी ,/ बटनी: बांटनी ,
पटनी: पाट दी जानी ,/ बदगुमां-मिथ्याभिमान ,
अटनी: आटना ,अटना, धागे को गुंथना,
खटनी: खटनेवाली,खटना शब्द से बनी संज्ञा,
रेशा रेशा >रेशः रेशः = एक एक तार,फाइबर
Subscribe to:
Posts (Atom)