Monday, May 24, 2010

ज़िन्दगी के भवन में चढ़ते हुए

कैसे कैसे दौर से गुज़रा हूं मैं
भरतनाट्यम्, कुचिपुड़ी, मुजरा हूं मैं।

ज़िन्दगी के भवन में चढ़ते हुए
मौत की सौ सीढ़ियां उतरा हूं मैं।

थी मिली सूरत भली , सीरत भली
गदिर्शों के दांत का कुतरा हूं मैं।

कुछ गली गंदी मिलीं, कुछ पाक साफ़
पैरहन मत देखिए सुतरा हूं मैं।

पल फले , फसलें पकीं ,‘ज़ाहिद’ मगर
खेत में झूठा खड़ा पुतरा हूं मैं।

दि. 08.04.10

सुतरा - पवित्र , स्वच्छ ,
पुतरा - पुतला , बिजूका ,

Saturday, May 8, 2010

जिन्दगी खटनी

कुछ दोस्तों को नयी पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार था इसलिए इसे सब्र से पढ़ें



सिल-बटे पर है हिना-सी हर खुशी बटनी।
उम्र मेरी जान ! वर्ना यूं नहीं कटनी ।।

जिन्दगी भर सब्र के पत्थर रखो दिल में,
बदगुमां ये खाइयां ऐसे नहीं पटनी।।

यह दिया संतोष का यूं ही नहीं जलता ,
रेशा रेशा सांस से बत्ती पड़ी अटनी।।

है खिंची रस्सी हवा में आजमाइश की ,
हाथ खोले चल रही है वक्त की नटनी ।।

वह जो परदे से लगी चिपकी खड़ी दिखती ,
आस की ज़िद से भरी है , वह नहीं हटनी।।

घर में सबके मुंह में वह पानी बनी फिरती ,
चटपटी ,तीखी ,सलोनी आम की चटनी।।

आंख भर उसको कभी ‘ज़ाहिद’ नहीं देखा ,
एक पल ठहरी नहीं यह जिन्दगी खटनी।।
1 मई 2010

हिना: मेंहदी ,/ बटनी: बांटनी ,
पटनी: पाट दी जानी ,/ बदगुमां-मिथ्याभिमान ,
अटनी: आटना ,अटना, धागे को गुंथना,
खटनी: खटनेवाली,खटना शब्द से बनी संज्ञा,
रेशा रेशा >रेशः रेशः = एक एक तार,फाइबर