कितनी कितनी दूर की नदियों को सागर खींचता ।।
रूप ,धन ,वैभव नहीं ,सबको ही आदर खींचता ।।
लफ़्ज़ मेरे हलक़ से यूं शायरी को खींचते ,
जैसे चारा मछली को पानी के बाहर खींचता ।।
इस कदर है अपने ढंकने की ज़माने को फिक़र ,
नींद में भी ,जो है अपना , वो ही चादर खींचता।।
हर कुएं सूने दिखे यां हर नदी सूखी मिली ,
काश मैं बहती हुई धारा से गागर खींचता ।।
डूबते हैं आंख में अरमान इस उम्मीद से ,
कोई तो ‘ज़ाहिद’ मिरे बाजू़ को आकर खींचता ।।
04.03.10/11.03.10/
Saturday, March 13, 2010
Tuesday, March 2, 2010
साझे में नफ़रत
मैं जिन आंखों में मिल जाती मुहब्बत बस पिया करता।
कहां रंजेजफ़ा , फ़िक्रेतग़ाफुल मैं किया करता ।।
जहालत ही जहालत है , ज़हानत में जमाने की ,
मैं सदमे सह लिया करता , मैं आंसू पी लिया करता।।
नहीं रहबर हैं राहों में , रिवाजेरहज़नी हर सू ,
सभी धकियाते चलते हैं , मैं फिर भी चल लिया करता ।।
यहां साझे में नफ़रत होती है तो ख़ूब होती है।
कहीं भी प्यार साझे में कहां कोई किया करता।।
किसी से क्या करूं शिकवा ,किसे चिन्ता किसी की है ,
कभी ‘ज़ाहिद’ ज़ुबां खुलती तो उसको सी लिया करता ।।
190210
रंजेजफ़ा - जफ़ा का रंज, सितम का दुख।
फ़िक्रेतग़ाफुल - उपेक्षा की चिंता, वेतवव्जुही की परवाह।
जहालत - मूर्खता ,बेवकूफ़ी।
ज़हानत - ज़हन की तेज़ी, बौद्धिकता।
रहबर /राहबर- पथप्रदर्शक, अगुआ।
रिवाजेरहज़नी - रास्ते में लूट लेने का रिवाज।
हर सू - हर तरफ।
कहां रंजेजफ़ा , फ़िक्रेतग़ाफुल मैं किया करता ।।
जहालत ही जहालत है , ज़हानत में जमाने की ,
मैं सदमे सह लिया करता , मैं आंसू पी लिया करता।।
नहीं रहबर हैं राहों में , रिवाजेरहज़नी हर सू ,
सभी धकियाते चलते हैं , मैं फिर भी चल लिया करता ।।
यहां साझे में नफ़रत होती है तो ख़ूब होती है।
कहीं भी प्यार साझे में कहां कोई किया करता।।
किसी से क्या करूं शिकवा ,किसे चिन्ता किसी की है ,
कभी ‘ज़ाहिद’ ज़ुबां खुलती तो उसको सी लिया करता ।।
190210
रंजेजफ़ा - जफ़ा का रंज, सितम का दुख।
फ़िक्रेतग़ाफुल - उपेक्षा की चिंता, वेतवव्जुही की परवाह।
जहालत - मूर्खता ,बेवकूफ़ी।
ज़हानत - ज़हन की तेज़ी, बौद्धिकता।
रहबर /राहबर- पथप्रदर्शक, अगुआ।
रिवाजेरहज़नी - रास्ते में लूट लेने का रिवाज।
हर सू - हर तरफ।
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