Monday, February 21, 2011

अब तो हर ख़्याल ख़ुशगवार बने।

1.

ईद में दीद के आसार बनें ।
अरमां क्यों आज सोगवार बनें।

मेरी ख़ामोशियों को नाम न दो ,
इश्क़ है इश्क़ न अख़बार बने।

जो बहुत बोलते हैं उनको न सुन
तू न नफ़रत का कारोबार बने।

है फ़ज़ा में बहार का आलम ,
अब तो हर ख़्याल ख़ुशगवार बने।

वक्त ‘ज़ाहिद’ का निगहबान रहे ,
रूह हर्गिज़ न शर्मशार बने।



16.02.11

2.

मज़बूर हैं हम किन्तु गुनहगार नहीं है।
सरकार के किरदार में सरकार नहीं हैं।

हां है करोड़ों धन छुपा बाहर विदेश में
पर देख लो स्वदेश में घर द्वार नहीं है।

ऐसी खुली किताब हैं अनपढ़ जिसे पढ़ लें
चलते हुए चैनल हैं हम अखबार नहीं हैं।

चाबी के खिलौने हैं हम लकड़ी के झुनझुने
हम मूंठ हैं केवल कोई तलवार नहीं हैं।

इक बच्चा भी कहता है कि बाबा बनो घोड़ा
हम शौक से कहते हैं कि इंकार नहीं है।

17.02.11

Sunday, February 6, 2011

खूबसूरत हैं रियाया हिरनें

वार छुप छुप के किए जाते हैं
हम शिकारी हैं सच बताते हैं।

हर झपट्टा है पूरी ताक़त का
हम कभी मुफ़्त का ना खाते हैं।

खूबसूरत हैं रियाया हिरनें
भूख में हम ये भूल जाते हैं।

हम नहीं कहते कि डरकर रहिए
कब किसे आंख हम दिखाते हैं।

सारा जंगल है ख़ौफ़ का आलम
जो हैं गीदड़ वही बताते हैं।

हम सभी वक़्त के निवाले हैं
राहे दुनिया में आते जाते हैं।

मौक़ा ताक़त जुनूनोशौक़ोहवस
लफ़्ज़ सारे हमी बनाते हैं।।
06/07.02.11