Sunday, May 22, 2011

बहुत उर्वर धरा है

हसीं है ज़िन्दगी , उसके लिए रोना भी पड़ता है।
उसी की मर्ज़ी जो चाहे , हमें होना ही पड़ता है।।

जिसे हम चाहें , अपना हो भी जाए ये नहीं सब कुछ ,
अगर कुछ पाना होता है तो कुछ खोना भी पड़ता है।।

बहुत उर्वर धरा है कुछ ना कुछ ऊगा ही करता है ,
मगर कुछ खास लेना हो तो फिर बोना ही पड़ता है।।

करे कोई , भरे कोई , ये क़िस्सा भी पुराना है ,
लगाता दाग़ दिल है , आंख को धोना ही पड़ता है।।

वो सारी रात मेरी बात पर हंसती रही लेकिन ,
सुबह बोली कि पगले रात में सोना भी पड़ता है।।
16.05.11

Sunday, May 8, 2011

मदर्स डे पर

आपकी बस्ती में घर मेरा न गुमनाम रहे।
कोई रिश्ता न सही पर दुआ सलाम रहे।।

शफ़क़ के तौर तरीक़ों के न रहें का़यल
हमारी निस्बतों में चांद सुब्ह ओ शाम रहे।।

इसी तरह से रहेगा जहां में जोश ओ जुनूं
हुनर किसी का रहे , आपका ईनाम रहे ।।

नज़र में चंद चुनिन्दा न साहबान रहें ,
मुसीबतों में फ़िक्र बस्ती ए तमाम रहे।।

ये क्या कि बैठा रहे कोठरी में रखवाला ,
घरों में लूट रहे, जुल्म ओ कोहराम रहे।।

यही दुआ है जहां यह रहे , रहे न रहे ,
खूबसूरत मगर आगाज़ ओ अन्जाम रहे।।

गर्ज़ ओ वहशत से भरी जिनदगी के जंगल में,
मां की ममता का सर पे साया सरेआम रहे।