tag:blogger.com,1999:blog-3752668255942015057.post3235455183476266001..comments2023-10-15T06:57:36.041-07:00Comments on meri haseen ghazalein: ज़िन्दगी के भवन में चढ़ते हुएkumar zahidhttp://www.blogger.com/profile/16434201158711856377noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-3752668255942015057.post-85489555886576846792010-06-10T17:47:16.842-07:002010-06-10T17:47:16.842-07:00वाह!वाह!!वाह!!!यह शेर बहुत उम्दा लगा.वाह!वाह!!वाह!!!यह शेर बहुत उम्दा लगा.संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3752668255942015057.post-3120427062497135152010-05-29T04:54:48.955-07:002010-05-29T04:54:48.955-07:00कैसे कैसे दौर से गुज़रा हूं मैं
भरतनाट्यम्, कुचिपु...कैसे कैसे दौर से गुज़रा हूं मैं <br />भरतनाट्यम्, कुचिपुड़ी, मुजरा हूं मैं।<br /><br />बहुत सुन्दर परिकल्पना है ज़ाहिद साहब!<br />ज़िन्दगी किस तरह जद्दोजहद के बीच से अपना रास्ता बनाती है, उस संपूर्ण द्वंद्व का चित्रण करती पंक्तियां।<br /><br />एक नया प्रयोग भी।<br /><br />यह साम्य और बिंब या रूपक आपने बिल्कुल सही लिया है कि ...<br /><br />भरतनाट्यम् कुचिपुड़ी मुजरा हूं मैं।<br /><br />इस तरह के प्रयोग कम से कम पहली बार देख रहा हूं और अभिभूत हूं...<br />तुलसी दास जी ने इसे ही इस प्रकार कहा है....<br /> <br />उमा दारु मरकट की नाई <br />सबहिं नचावत राम गुंसांई।<br /><br />दारु जोशित भी कहीं पाठ मिलता है।<br /><br />दारु-मरकट और दारु मरकट भी समझा जा सकता है। ?<br />अर्थ और आशय सिर्फ इतना है कि पेड़ों ओर बंदरों की भांति राम गोसाई सब प्राणिमात्र को नचाते है।<br /><br />हां, हम सब ‘दौर’ यानी वक्त के आगे मरकट या बंदर ही हैं। उसके हिलाए पत्ता भी नहीं हिलता ..पत्ता यानी दारु अर्थात पेड़ का एक लघु अवयव..<br />सुन्दर संयोजन<br /><br />और फिर इसी संपूर्ण संघर्ष को जसे ये पंक्तियां पूर्णता प्रदान करती है..<br /><br />ज़िन्दगी के भवन में चढ़ते हुए<br />मौत की सौ सीढ़ियां उतरा हूं मैं।<br /><br /><br />ये पंक्तियां जैसे जिन्दगी को अपने असली स्थान पर लाकर खड़ा कर देती हैं..<br /><br />पल फले , फसलें पकीं ,‘ज़ाहिद’ मगर <br />खेत में झूठा खड़ा पुतरा हूं मैं।<br /><br /><br />बधाई! बधाई !!शतशः बधाइयां!!!R.Venukumarhttps://www.blogger.com/profile/17501996519970954554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3752668255942015057.post-15340336545115196532010-05-29T04:35:24.212-07:002010-05-29T04:35:24.212-07:00अल्पना , पारुल और मुफलिस जी,
आप सबके प्रोत्साहन का...अल्पना , पारुल और मुफलिस जी,<br />आप सबके प्रोत्साहन का आभार..kumar zahidhttps://www.blogger.com/profile/16434201158711856377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3752668255942015057.post-62212415148151803422010-05-28T04:53:14.260-07:002010-05-28T04:53:14.260-07:00थी मिली सूरत भली , सीरत भली
गदिर्शों के दांत का कु...थी मिली सूरत भली , सीरत भली<br />गदिर्शों के दांत का कुतरा हूं मैं।<br /><br />लग तो रहा है<br />कि<br />बहुत कुछ कह पाने में<br />कामयाब रहे हैं आप....<br /><br />शेर क़ीमती है .daanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3752668255942015057.post-78980056598895151822010-05-26T22:30:19.453-07:002010-05-26T22:30:19.453-07:00zahid hi is baar phir baat dil tak gayi..yahi to p...zahid hi is baar phir baat dil tak gayi..yahi to pasand hai meri!Parul kananihttps://www.blogger.com/profile/11695549705449812626noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3752668255942015057.post-31691143468882481652010-05-26T20:43:07.458-07:002010-05-26T20:43:07.458-07:00थी मिली सूरत भली , सीरत भली
गदिर्शों के दांत का कु...थी मिली सूरत भली , सीरत भली<br />गदिर्शों के दांत का कुतरा हूं मैं।<br />*****यह शेर तो बहुत खूब कहा है आप ने!<br />वक्त की मार से सीरत सूरत सभी पर कम/ज्यादा असर पड़ता ही है.<br />-ज़िन्दगी के भवन में चढ़ते हुए<br />मौत की सौ सीढ़ियां उतरा हूं मैं।<br />वाह!वाह!!वाह!!!यह शेर बहुत उम्दा लगा.<br />-कशमकश और उलझने न जाने कितनी बार मारती हैं इंसान को.<br />बहुत अच्छी लगी गज़ल !Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3752668255942015057.post-36348790162937033742010-05-26T17:46:30.646-07:002010-05-26T17:46:30.646-07:00कुमार कौतुहल जी,
सुलभ सतरंगी जी,
रचना दीक्षित जी, ...कुमार कौतुहल जी,<br />सुलभ सतरंगी जी,<br />रचना दीक्षित जी, <br />श्रद्धा जैन जी,<br /><br />आपका शुक्रगुजार हूं कि आपको ग़ज़ल पसंद आई<br />इसी तरह हौसला दें और <br />कहीं कुछ ऐसा लगता है कि कुछ और बेहतर हो सकता है तो कृपया मशविरा भी ज़रूर देंkumar zahidhttps://www.blogger.com/profile/16434201158711856377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3752668255942015057.post-5014555031734261882010-05-26T08:19:32.294-07:002010-05-26T08:19:32.294-07:00adhbhut likhte hain aap
ज़िन्दगी के भवन में चढ़ते ह...adhbhut likhte hain aap<br /><br />ज़िन्दगी के भवन में चढ़ते हुए<br />मौत की सौ सीढ़ियां उतरा हूं मैं।श्रद्धा जैनhttps://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3752668255942015057.post-26254211041947802202010-05-25T01:04:21.076-07:002010-05-25T01:04:21.076-07:00हमेशा की तरह बेहतरीन,लाजवाब वाह!!!!वाह!!!! वाह!!!हमेशा की तरह बेहतरीन,लाजवाब वाह!!!!वाह!!!! वाह!!!रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3752668255942015057.post-33676951572288100242010-05-24T22:09:40.748-07:002010-05-24T22:09:40.748-07:00एक शानदार ग़ज़ल से रु-बी-रु हुआ आज,
ज़िन्दगी के भव...एक शानदार ग़ज़ल से रु-बी-रु हुआ आज,<br /><br />ज़िन्दगी के भवन में चढ़ते हुए<br />मौत की सौ सीढ़ियां उतरा हूं मैं।<br /><br />पल फले , फसलें पकीं ,‘ज़ाहिद’ मगर<br />खेत में झूठा खड़ा पुतरा हूं मैं।<br />... वाह भाईSulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3752668255942015057.post-32743785030289180322010-05-24T10:33:59.326-07:002010-05-24T10:33:59.326-07:00कैसे कैसे दौर से गुज़रा हूं मैं
भरतनाट्यम्, कुचिपु...कैसे कैसे दौर से गुज़रा हूं मैं <br />भरतनाट्यम्, कुचिपुड़ी, मुजरा हूं मैं।<br /><br />ज़िन्दगी के भवन में चढ़ते हुए<br />मौत की सौ सीढ़ियां उतरा हूं मैं।<br /><br />अत्यंत प्रभावशाली चित्रण...स्वागतम्Kumar Koutuhalhttps://www.blogger.com/profile/01987984875159921409noreply@blogger.com