Friday, November 13, 2009

यानी नज़र में हूं !

नज़रें चुरा रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !
कतरा के जा रहे है वो , यानी नज़र में हूं !

जिनसे कभी नहीं मिले उनसे ही मिल रहे ,
मिलकर जला रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !

जिस पल्लू में क़समों की गांठ है मिरे खि़लाफ़ ,
उसको झुला रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !

किस पर गिरेगी बिजली फ़िज़ा में है खलबली ,
मेघों-से छा रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !

उनकी हथेलियों में क़त्ल की लकीर है ,
मेंहदी रचा रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !

080609.

4 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है .... खूबसूरत अहसासों को बेहतरीन शब्द दिए हैं आपने

    ReplyDelete
  2. wah

    उनकी हथेलियों में क़त्ल की लकीर है ,
    मेंहदी रचा रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !

    behatareen.

    ReplyDelete
  3. shobhit g
    yogesh g
    bahut bahut dhanyavad.

    ReplyDelete
  4. जिस पल्लू में क़समों की गांठ है मिरे खि़लाफ़ ,
    उसको झुला रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !
    wah janab ! pallu mein qasmon ki ganth..naya aur umda prog hai
    उनकी हथेलियों में क़त्ल की लकीर है ,
    मेंहदी रचा रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !
    great sir...innovation inthe field of sblimity I think..nazumiyon ke liye ek naya rasta apne bana diya aur mehandi ko qatl se jodkar to kamal hi kar diya aapne..nice mubaraq..

    ReplyDelete