Sunday, November 22, 2009

ये चादर नींद में ख्वाबों की है

जो दिल ही नहीं लेते हैं अक्सर जान लेते हैं
उन्हें हम बारहा दिल से दिलोजां मान लेते हैं

ये गुल गुलशन ये शहरों की हंसीं रंगीनियां सारी
ये चादर नींद में ख्वाबों की है , हम तान लेते हैं

कभी खुलकर नहीं रोती ,कभी शिकवा नहीं करती
अंधेरे में सिसकती मां को हम पहचान लेते हैं

किसे मंज़िल नहीं मिलती किसे रस्ता नहीं मिलता
सुना है मिलता है सब कुछ अगर हम ठान लेते हैं

इन्हीं गलियों में मिलते हैं कभी इंसां कभी शैतां
कि हम बंजारा हैं सारा इलाक़ा छान लेते हैं

सुनारों की दुकां के सामने अक्सर उन्हें देखा
वो सुनझर1 हैं जो कचरे से ही सोना खान 2 लेते हैं

शहरवालों के दिल में क्या पता ‘ज़ाहिद’ बसा क्या है
वो मंडी के लिए बंजर नहीं दहकान 3 लेते हैं

× कुमार ज़ाहिद , 131109.
1. सुनझर या सोनझर का अर्थ सोना गलानेवाली आदिवासी जाति जो सोने का काम होनेवाली दूकानों के सामने से कचरा उठाकर उसे गलाकर सोना निकालते हैं ।
2. खानना यानी खोजना , ढूंढना । 3. दहकान यानी खेत ,

6 comments:

  1. Behad sundar rachna!

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. जो दिल ही नहीं लेते हैं अक्सर जान लेते हैं
    उन्हें हम बारहा दिल से दिलोजां मान लेते हैं
    har baat bemisaal is karan aana pada phir dobara

    ReplyDelete
  3. किसे मंज़िल नहीं मिलती किसे रस्ता नहीं मिलता
    सुना है मिलता है सब कुछ अगर हम ठान लेते हैं

    इन्हीं गलियों में मिलते हैं कभी इंसां कभी शैतां
    कि हम बंजारा हैं सारा इलाक़ा छान लेते हैं

    सुनारों की दुकां के सामने अक्सर उन्हें देखा
    वो सुनझर1 हैं जो कचरे से ही सोना खान 2 लेते हैं

    शहरवालों के दिल में क्या पता ‘ज़ाहिद’ बसा क्या है
    वो मंडी के लिए बंजर नहीं दहकान 3 लेते हैं


    umda khyalon ki maheen qaseedakari.
    new experiments with reality.

    ReplyDelete