Thursday, July 1, 2010

काग़ज़ों में शोर है फ़िरदौस का

दोस्तों! भयानक तपती गर्मी का यह गर्म अहसास अगर मुमकिन हो तो बारिश की फुहारों के साथ पढ़ें...



फ़िल्म से यह मेल क्यों खाती नहीं ?
ज़िन्दगी रोती हुई गाती नहीं।

आग के आते थपेड़े हैं सदा
पंखों से ठंडी हवा आती नहीं।

रेंगती है जौंक-सी मरियल नदी
अब किसी अल्हड़ सी बलखाती नहीं।

काग़ज़ों में शोर है फ़िरदौस का
बुर्क़े हैं , सूरत नज़र आती नहीं।

कहते हैं कि उस तरफ़ हैं मंजिलें,
जिस तरफ़ कोई सड़क जाती नहीं।

जख़्म ताक़तभर दबाती है सफ़ा
दुखती रग आहिस्ता सहलाती नहीं।

बेसबब ‘ज़ाहिद’ खड़े हो राह में
अब सबा कलसे इधर लाती नहीं।

16.05.10 फ़िरदौस-स्वर्ग/ सफ़ा- इलाज़/सबा- सुबह की ठंडी हवा

24 comments:

  1. Kya baat kahi hai...manzilon ki taraf raste jate nahi...! Manzilen waqayi chattanon pe hoti hain!

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  2. ustad ji..dikha hi di apni ustadi..har pankti par 'wah' hi nikli...jawwab nahi

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  3. कहते हैं कि उस तरफ़ हैं मंजिलें,
    जिस तरफ़ कोई सड़क जाती नहीं।
    Kia baat kahee aap ne
    Jee han ...
    sadak to koee nahee jatee
    hume khud rasta bnana padta hai

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  4. कहते हैं कि उस तरफ़ हैं मंजिलें,
    जिस तरफ़ कोई सड़क जाती नहीं।
    वाह बहुत खूब। धन्यवाद।

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  5. Janab !Kya perception hai..kamal ke bimb pesh kiya hai....
    रेंगती है जौंक-सी मरियल नदी
    अब किसी अल्हड़ सी बलखाती नहीं।

    काग़ज़ों में शोर है फ़िरदौस का
    बुर्क़े हैं , सूरत नज़र आती नहीं।

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  6. कहते हैं कि उस तरफ़ हैं मंजिलें,
    जिस तरफ़ कोई सड़क जाती नहीं।

    वाह शाहिद भाई वाह...बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है...दाद कबूल करें...
    नीरज

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  7. कहते हैं कि उस तरफ़ हैं मंजिलें,
    जिस तरफ़ कोई सड़क जाती नहीं।
    बहुत खूब!!!!!!!!! बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है.

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  8. वाह ! वाह !! वाह !!!
    जाहिद साहब !
    सचमुच हसीं ग़ज़लें.
    आनंदित करने के लिए आभार !
    हम करेंगे अगली पोस्ट का इंतज़ार !

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  9. फ़िल्म से यह मेल क्यों खाती नहीं ?
    ज़िन्दगी रोती हुई गाती नहीं।

    आग के आते थपेड़े हैं सदा
    पंखों से ठंडी हवा आती नहीं।

    रेंगती है जौंक-सी मरियल नदी
    अब किसी अल्हड़ सी बलखाती नहीं।

    वैसे तो इस गजल के हर शेर में दम है, लेकिन आज की समकालीन गजल के आजाद तेवरों से भरें ये शेर नये बिंब और कथनीयता में अपना ही स्थान रखते हैं
    बधाई जाहिद साब!

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  10. ज़ाहिद साहब ,
    आदाब अर्ज़ है !
    पहली दफ़ा आना हुआ आपके यहां ,और देखिए हमेशा के लिए आपके हो'कर रह गए हैं ।
    अच्छा मत्ला है…
    फ़िल्म से यह मेल क्यों खाती नहीं?
    ज़िन्दगी रोती हुई गाती नहीं !

    …और नये मिज़ाज के इस शे'र के लिए भी मुबारकबाद !

    रेंगती है जौंक-सी मरियल नदी
    अब किसी अल्हड़ सी बलखाती नहीं !

    आइएगा , कभी हमारे यहां शस्वरं पर भी…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  11. कहते हैं कि उस तरफ़ हैं मंजिलें,
    जिस तरफ़ कोई सड़क जाती नहीं।

    .बहुत खूब .....क्या बात है ......!!

    बेसबब ‘ज़ाहिद’ खड़े हो राह में
    अब सबा कलसे इधर लाती नहीं।

    रश्क है हो रहा जाहिद तेरे हर शे'र पे
    क्यों कलम मुझ में ये हुनर लाती नहीं .....?????

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  12. कहते हैं कि उस तरफ़ हैं मंजिलें,
    जिस तरफ़ कोई सड़क जाती नहीं।

    गज़ल का हर शेर शानदार..ये खास पसंद आया.

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  13. Its gud dat u didnt listen to the blog manager JI... otherwise it was difficult to find such beautifu ghazals.... i liked ur blog a lot...

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  14. जख़्म ताक़तभर दबाती है सफ़ा
    दुखती रग आहिस्ता सहलाती नहीं।
    वाह !बेहद उम्दा!
    ग़ज़ल के सभी शेर एक से बढ़कर एक लगे.

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  15. @ब्लॉग्गिंग में नियमित नहीं आ पा रही हूँ ,इसलिए आप की इस पोस्ट पर देर से पहुंचना हुआ है.

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  16. कहते हैं कि उस तरफ़ हैं मंजिलें,
    जिस तरफ़ कोई सड़क जाती नहीं।

    ख़याल बेहद ख़ूबसूरती से शेर में ढाला गया है,
    मुझे तो हासिले ग़ज़ल लगा ये शेर,
    बहुत ख़ूब !

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  17. तमाम शोरा हजरात का तहेदिल से शुक्रिया कि इस तरह मेरी हौसला अफ़जाई की है कि खुदबखुद ख्याल छलकने लगे हैं

    आदाब

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  18. कहते हैं कि उस तरफ़ हैं मंजिलें,
    जिस तरफ़ कोई सड़क जाती नहीं।

    behatareen.

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  19. pahali baar maine bhi aapkaa blog dekha. ghazalen dekheen. achchha laga. ek-doosaron ko parh kar preranaa hi milati hai. vaise aap manje huye khilaadee hai. badhai.

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  20. Baarish ki fuharon ke liye to hum log taras rahe hain,par unke bina bhi aapki post ne tapti garmi me taza hawa ke jhonke sa kaam kiya.shubkamnayen.

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  21. kehte hain us taraf hain manzilen,
    jis taraf koi sadak jati nahin.

    bahut shandaar...
    kyaa baat ...
    kyaa baat ...
    kyaa baat ...

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  22. कहते हैं कि उस तरफ़ हैं मंजिलें,
    जिस तरफ़ कोई सड़क जाती नहीं।

    Beautiful

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