Wednesday, September 21, 2011

मुक्तक / क़तआत

किसी के ख्याल से , पत्थर हुआ यह दिल पिघलता है।
नज़र के उठने गिरने से यहां मौसम बदलता है।
किसी की जुल्फ के साये में आकर ये समझ आया
लगी हो आग दिल में तो बदन सारा ही जलता है।
02.09.11

मुझे कुदरत की नेमत है, बड़े ईनाम लेता हूं।
बरसते हैं क़हर तो दौड़कर मैं थाम लेता हूं।
मुझे अफ़सोस है , सदमों से मैं बेहोश हो जाता ,
मगर जब होश आता है , तुम्हारा नाम लेता हूं।
02.09.11

फ़कीर होके न फाके़ किये ना मस्ती की।
किसी शहर में ना ठहरे न ठौरे बस्ती की।
न पैरहन ही संवारे न फ़िक्रेजुल्फ़ें की ,
तुम्हारी याद के सन्नाटों में गुमगस्ती की।
31.08.11

इस देश में आज़ादी पर पाबंदियां होने लगीं।
सागर ,धरा ,आकाश की हदबंदियां होने लगीं।
हद है कि होता सत्य का खुलकर यहां पै क़त्लेआम,
यह देखकर शहनाइंयां , सारंगियां रोने लगीं।
03.09.11

दिल हमारे साफ़ थे तो कैसे मैले हो गए
हम कभी पत्थर कभी मिट्टी के ढेले हो गए
जब अंधेरे थे तो सारे दोस्त-दुश्मन एक थे
अब उजालों में मिले तो सब अकेले हो गए।
16.09.11

10 comments:

  1. waah.. haqueer ji.. waqt ne jo taab aapko diya h.. uski koi barabari nahi.. waah

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  2. दिल हमारे साफ़ थे तो कैसे मैले हो गए
    हम कभी पत्थर कभी मिट्टी के ढेले हो गए
    जब अंधेरे थे तो सारे दोस्त-दुश्मन एक थे
    अब उजालों में मिले तो सब अकेले हो गए।

    bahut khoobsoorat qata
    mubarak ho

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  3. इन मुक्तकों में सबसे बेहतरीन पंक्तियाँ:
    "लगी हो आग दिल में तो बदन सारा ही जलता है।"

    "जब अंधेरे थे तो सारे दोस्त-दुश्मन एक थे
    अब उजालों में मिले तो सब अकेले हो गए।"

    बेहतरीन मुक्तकों के लिए बधाई स्वीकारें!!

    आभार
    तेरे-मेरे बीच पर आपके विचारों का इंतज़ार है...

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  4. bahut sundar likha hai ..
    किसी की जुल्फ के साये आकर ये समझ आया
    yaha shayad ...me ..missing hai ..

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  5. सतश्री अकाल शारदा जी!
    धन्यवाद...'में' सचमुच जल्दबाजी में छूट गया था ,
    पलटकर नहीं देखा था अब जोड़ दूंगा edit जब करूंगा

    किसी की जुल्फ के साये में आकर ये समझ आया

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  6. प्रांजल जी,
    इस्मत जी
    प्रतीक भाई
    और शारदा जी
    हौसले को बुलंद करने के लिए शुक्रिया

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  7. वाह! एक से बढ़कर एक मुक्तक...
    प्रभावी कथ्य!

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