कहने के लिए यों तो हज़ारों में कहा है।
जो कह नहीं सका, वो इशारों में कहा है।।
मझधार में तूफ़ान से लड़ते रहे चुपचाप,
फिर जीत के हुनर को किनारों में कहा है।।
पतझर के दर्द, गर्मियों की प्यासी तपन को,
फूलों की रंगोबू से बहारों में कहा है।।
सांसों की डोर डोर से ख़्वाबों के कसीदे,
नज़मों में उकेरे हैं, नज़ारों में कहा है।।
सदमात सर्द कर गए दिल, फिर भी ख़्वाहिशें-
सरगोशियों में सुर्ख़ अज़ारों में कहा है।।
इस मुल्क में चूल्हों पै जो गुज़री है सुब्होशाम,
ईंधन की दुकानों से क़तारों में कहा है।।
सूरज को दिन दहाड़े तो पूनम में चांद को,
‘ज़ाहिद’ ग्रहन लगे तो सितारों में कहा है।।
29.09.12, शनिवार
शब्दावली:
1. जीत के हुनर = विजय के कौशल , जीतने के गुर,
2. रंगोबू = रंग और सुगंध, 3. ख्वाबों के कसीदे = सपनों के बेलबूटे,
4. नज़मों = कविताओं, 5. सदमात = सदमा का बहुवचन, चोटें, प्रक्षेप,
6. सर्द = सफ़ेद, रक्तहीन, विवर्ण, 7. ख्वाहिशें = इच्छाएं,
8. सरगोशियों = फुसफुसाहटों, कान में कही जानेवाली बातें,
9. सुर्ख़ = लाल, आरक्त, 10. अज़ारों = गालों,
ख्वाबों के कसीदे दिलको छू लेते हैं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
bahut achchhe...
ReplyDeleteवाह - बहुत खूब
ReplyDeleteइस मुल्क में चूल्हों पै जो गुज़री है सुब्होशाम,
ReplyDeleteईंधन की दुकानों से क़तारों में कहा है।।
waah, zaahid ji, kya khoob ghazal hai