Wednesday, April 28, 2010

चाह हो तो मैं हिमालय से पिघलकर आउंगा ।।

ख्वाब तुम देखो कि मैं नभ पर चमककर छाउंगा ।।
प्यार की बदली बनूंगा , आंख में भर जाउंगा ।।

इतने स्थापित हो तुम कि चाहकर ना हिल सको ,
मैं हवा हूं सांस भी खींचो तो खिंचकर आउंगा ।।

मैं तली में याद के टुकड़े की मानिंद हूं पड़ा ,
तुम खंगालोगे तो मैं उठकर सतह पर आउंगा ।।

इम्तिहां की राह में दीवार ना पैदा करो ,
चाह हो तो मैं हिमालय से पिघलकर आउंगा ।।

हज़ से लौटा हूं अभी ‘जाहिद’ अभी प्याला न दो ,
चार छः दिन ज़्यादा से ज़्यादा सबर कर पाउंगा ।।

4.3.10/11.03.10

16 comments:

  1. अरे वाह भई दिल खुश कर दिया

    मतला पढा अच्छा लगा दूसरा शेर और अच्छा तीसरा और अच्छा चौथा उम्दा और मकता पढ़ कर तो दिल, दिमाग, मन सब झूम गया

    बहरो वजन की बात तो श्रेष्ठ जन ही बताएँगे

    हमें तो कहन ने इतना मुतासिर कर दिया कि मन बाग बाग हो गया

    इतने स्थापित हो तुम कि चाहकर ना हिल सको ,
    मैं हवा हूं सांस भी खींचो तो खिंचकर आउंगा ।।

    वाह क्या बात कही मजा आ गया

    दिली दाद कबूल करें

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  2. मैं तली में याद के टुकड़े की मानिंद हूं पड़ा ,
    तुम खंगालोगे तो मैं उठकर सतह पर आउंगा ।।

    Naya prog hai sir ..wah wah wah

    इतने स्थापित हो तुम कि चाहकर ना हिल सको ,
    मैं हवा हूं सांस भी खींचो तो खिंचकर आउंगा ।।
    bina lag laoet ke dotook bat..Kya bat hai..

    इम्तिहां की राह में दीवार ना पैदा करो ,
    चाह हो तो मैं हिमालय से पिघलकर आउंगा ।।

    laaaaajawaab..oho wah wah

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  3. हज़ से लौटा हूं अभी ‘जाहिद’ अभी प्याला न दो ,
    चार छः दिन ज़्यादा से ज़्यादा सबर कर पाउंगा ।।
    वाह !!!!!!!!! क्या बात है..... अच्छी है ग़ज़ल .शानदार जानदार और क्या कहूँ..........

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  4. laajawab..!
    hum yon hi aapke murid nahin hain...likhte rahie...

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  5. चार-छह दिन ज़्यादा से ज़्यादा सबर कर पाउंगा,
    कोई बात नहीं - दो दिन तो हो ही गए हैं, अब अगली ग़ज़ल कब आ रही है?
    सबर हमसे भी नहीं हो रहा जनाब!

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  6. 'मैं तली में याद के टुकड़े की मानिंद हूं पड़ा ,
    तुम खंगालोगे तो मैं उठकर सतह पर आउंगा ।।'

    क्या बात कही है!वाह!वाह!
    -पूरी गज़ल ही बेहद खूबसूरत लगी.

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  7. इतने स्थापित हो तुम कि चाहकर ना हिल सको ,
    मैं हवा हूं सांस भी खींचो तो खिंचकर आउंगा ।।

    मैं तली में याद के टुकड़े की मानिंद हूं पड़ा ,
    तुम खंगालोगे तो मैं उठकर सतह पर आउंगा ।।

    वाह हर she'r बहुत khngalne के baad likha jaan padta है .....!!

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  8. क्या बात है. बहुत खूब.

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  9. मैं हवा हूं सांस भी खींचो तो खिंचकर आउंगा ।।
    -
    चाह हो तो मैं हिमालय से पिघलकर आउंगा ।।
    ...वाह वाह !!

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  10. मैं तली में याद के टुकड़े की मानिंद हूं पड़ा ,
    तुम खंगालोगे तो मैं उठकर सतह पर आउंगा ।

    वाह भाई वाह...क्या बात कही है...कमाल की ग़ज़ल...दाद कबूल हो...
    नीरज

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  11. बहुत दिन हो गए तो फिर आया
    कुछ नया हो तो कुछ मज़ा आए
    आज जाता हूँ लौट कर लेकिन
    दुआ है कुछ तो मुद्दआ आए

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  12. himanshuji,
    mazaa intezar ka hai chakh leejiye
    mazaa phir mazaa hai mazaa leejiye

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  13. behtarin zahid ji, behad umda, bahut he achcha likha hai, badhaaiyan :)




    amit~~

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