Sunday, October 4, 2009

बोतलों में बंद पानी

पर्वतों चट्टान पर ठहरा नहीं ,स्वच्छंद पानी ।
लिख रहा बंजर पड़े मैदान पर ,नव-छंद पानी ।।

सभ्यता के होंठ पर दो बूंद तृप्ती छींटकर ,
बह नहीं सकता नदी सा ,बोतलों में बंद पानी ।।

है चमक आंखों में ,चेहरों में चमक है ,
इसलिए निर्मल कि रचता ,कुछ नहीं छल-छंद पानी ।।

आग की लपटों से लहरें ,होड़ ले लेकर लड़ें ,
जीत के इतिहास में रुतवा ,रखे बुलंद पानी ।।

रोज कितने फूटते हैं ,द्वैष के विष कूट-काले ,
डाल देता दहकते अंगार पर , आनंद पानी ।।

जब जहां दिल चाहता बस फूट पड़ता है वहां ,
कब कहां करता किसी से ,कोई भी अनुबंध पानी ।।

रिश्तों की दीवार हद उम्मीद निस्बत से है दूर
मां पिता‘जाहिद’किसी का है नहीं फरजंद पानी ।।

2 comments:

  1. sabhi sher umda/behatareen, badhaai sweekaren.

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  2. रोज कितने फूटते हैं ,द्वैष के विष कूट-काले ,
    डाल देता दहकते अंगार पर , आनंद पानी ।।

    रिश्तों की दीवार हद उम्मीद निस्बत से है दूर
    मां पिता‘जाहिद’किसी का है नहीं फरजंद पानी ।।
    pani par aur hindi par itani behatreen ghazal pahli bar kaezkam meine padhi hai. vah.badhai.

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