क्या पता अब बात क्या है मन से मन मिलता नहीं
भीड़ जब से बढ़ गई है अपनापन मिलता नहीं
बोझ है कितना दिलों पर सुस्त है जीने का ढंग
नाम बांकेलाल है पर बांकपन मिलता नहीं
चाहता हूं बांट दूं सारा जो धन है प्यार का
प्यार जिसको चाहिए ऐसा स्वजन मिलता नहीं
जरजमीनोजार के है सब दीवानावार यार
आदमी की चाह का दीवानापन मिलता नहीं
अब भी सुनते हैं पुकारो तो मगर बेमन से क्यों
क्या पुकारों में मुहब्बत का वज़न मिलता नहीं
हम जमाने से अलग हो दूर जाकर क्यों चलें
साथ चलने में कभी बेगानापन मिलता नहीं
हाथ ‘ज़ाहिद’ ने बढ़ाया है तो बढ़कर थाम लो
वर्ना पछताओगे मिलनेवाला जन मिलता नहीं
Saturday, October 17, 2009
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चाहता हूं बांट दूं सारा जो धन है प्यार का
ReplyDeleteप्यार जिसको चाहिए ऐसा स्वजन मिलता नहीं
अब भी सुनते हैं पुकारो तो मगर बेमन से क्यों
क्या पुकारों में मुहब्बत का वज़न मिलता नहीं
हाथ ‘ज़ाहिद’ ने बढ़ाया है तो बढ़कर थाम लो
वर्ना पछताओगे मिलनेवाला जन मिलता नहीं
bahut gahrai hai apke andaz aur bayan mein.mubaraq.