Sunday, September 26, 2010

रंगोफ़नोसुख़न के भी जागीरदार हैं

होंगे गुनाहगार तो मर जाएंगे ज़ाहिद ।
वर्ना हज़ार बार सर उठाएंगे ज़ाहिद ।।

सौ बार या हज़ार या लाखों करोड़ बार
हों आजमाइशें तो न घबराएंगे ज़ाहिद ।।

लगती है जानलेवा कलेजे में हरेक चोट
गो जानती है सख़्त हैं बच जाएंगे ज़ाहिद।।

मकतब की ज़िन्दगी के लिए वर्क़ कै़द हैं
ना जाने कब मिलेंगे या मिलवाएंगे ज़ाहिद।।

गूंगी ग़ज़ल को बारहा कहते हैं मुक़र्रर
अशआर के शऊर बिखर जाएंगे ज़ाहिद।।

अब भी दुआ सलाम में शामिल है सियासत
क्या अब यहां से साफ़ निकल पाएंगे ज़ाहिद।।

रंगोफ़नोसुख़न के भी जागीरदार हैं
इस गांव में आने से भी कतराएंगे ज़ाहिद।।
28.04.10/17.05.10


आजमाइशें ः कठिन परीक्षाएं
मकतब ः किताबघर, शाला , वाचनालय ,
वर्क़ ः पन्ने ,
बारहा ः बार बार ,
मुक़र्रर ः पुनः , एक बार फिर ,
अशआर ः शेर का बहुवचन ,
शऊर ः शिष्टाचार , लिहाज ,
सियासत ः राजनीति , बनावट , झूठ
रंगोफ़नोसुख़न ः चित्ररंगशाला ,कला क्षेत्र ,साहित्य-सृजन
जागीरदार ः क्षेत्र विषेश का अधिपति , मालिक ,