Monday, February 22, 2010

जादुई पत्थर

मेरा दुश्मन बहुत चालाक ,हंसकर वार करता है।।
हमें जिस बात का डर है उसे इज़हार करता है।।

किसी का मैं नहीं हूं ,हो नहीं सकता , बताता है,
मैं जिनके दिल में हूं ,उनमें खड़ी दीवार करता है।।

मुसलसल ज़िन्दगी में क्यों लगी ठोकर बताता हूं ,
जमाना जादुई पत्थर से पथ तैयार करता है।।

हथेली पर हिना ,होंठों पै लाली , गाल पर सुर्ख़ी ,
शहर सारा कसाई की तरह श्रृंगार करता है।।

समझ आती नहीं है इश्क़ की तासीर कैसी है ,
कहीं सेहत बनाता है ,कहीं बीमार करता है।।


उसे पागल कहा जाता ,जो हंसता और रोता है
उसे दीवाना कहते हैं ,जो चुप दीदार करता है।।

यहां इंकार भी इक़रार है , इक़रार शुब्हा है ,
सज़ा ‘ज़ाहिद’ को होती है ,मज़ा संसार करता है।।

17.02.10

Tuesday, February 16, 2010

रास्ते मरमरी बांहें नहीं होते यारों !

जख्म जो दिल के छुपाने हों , मुस्कुराते चलो।
घोर बंजर में , बियाबां में लहलहाते चलो ।।

उम्र नाजुक है मगर दूर तलक जाएगी ,
बोझ कंधे बदल बदलके बस उठाते चलो ।।

रास्ते मरमरी बांहें नहीं होते यारों !
सम्हल सम्हल के चलो ,संतुलन बनाते चलो ।।

क़दम क़दम में यहां लोग-बाग भिड़ जाते ,
ये हैं अंधों का शहर लाठी ठकठकाते चलो ।।

मौत मंजर नहीं होती है, न सकते में रहो ,
कब्र के पास से गुजरो तो गुनगुनाते चलो ।।

शाख अच्छी नहीं लगती जो न झूमे झूले ,
तुम परिन्दों की तरह उड़ते चहचहाते चलो।।

क्यों रहें ख़ौफ़ के दरवाज़ों के पीछे ‘ज़ाहिद’,
हौसलों ! ज़ंग लगी कुंडी खड़खड़ाते चलो ।।

× कुमार ज़ाहिद ,मंगल ,16.02.10