Friday, October 30, 2009

मेरे बिछुड़े हुए अफ़सोस

मेरे बिछुड़े हुए अफ़सोस

हाली लम्हे मेरे माज़ी से लिपटकर रो लें ।।
मैं ये चाहूं कि जागे साल रात भर सो लें ।।

ख्वाब सदियों के नदी बनके आंख से बहते ,
दर्द आएं हरे जख्मों की रिसन को धो लें ।।

खूब कोशिश में हैं कि जिन्दगी हमराज बने,
दौरेतारीक़ी में मुमकिन है मुट्ठियां खोले।

जो थे अपने वो गिले बनके दूर जा बैठे ,
मेरे बिछुड़े हुए अफ़सोस हमीं इक हो लें ।।

दिलका ’ज़ाहिद’ है नरम उसको होश कल का है ,
इसलिए चुप है वो मुमकिन है कभी ना बोले ।।
160505.

5 comments:

  1. ख्वाब सदियों के नदी बनके आंख से बहते ,
    दर्द आएं हरे जख्मों की रिसन को धो लें ।।

    खूब कोशिश में हैं कि जिन्दगी हमराज बने,
    दौरेतारीक़ी में मुमकिन है मुट्ठियां खोले।

    जो थे अपने वो गिले बनके दूर जा बैठे ,
    मेरे बिछुड़े हुए अफ़सोस हमीं इक हो लें ।।

    Bahut khoob, bahut achchhe bhaav bune aapne !

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  2. मेरे बिछुड़े हुए अफ़सोस

    हाली लम्हे मेरे माज़ी से लिपटकर रो लें ।।
    मैं ये चाहूं कि जागे साल रात भर सो लें ।। .....kya khoob gahre ehsaason ko shabd diye hain,bahut hi badhiyaa

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  3. वाह !
    बहुत खूब कहा !
    ख्वाब सदियों के नदी बनके आंख से बहते ,
    दर्द आएं हरे जख्मों की रिसन को धो लें ।।

    ____मुबारक हो ग़ज़ल !

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  4. Aapki housla afjai hai
    ab ghazal par bahar aayi hai


    shukriya

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