या मैं बदल गया हूं या फिर वो बदल गया ।
से मेरा सोच मुझसे भी आगे निकल गया ।।
जब तक था वो नादान तो गफ़लत में मै भी था ,
जब उसके होश सम्हले तो मैं भी सम्हल गया ।।
कल उंगलियां पकड़ के भी गिरता था बार बार ,
ये वो ही है जो हाथ लगाते उछल गया ।।
पहले तो मुंह में रखके चबाता था सोजोगम ,
इस बार वो तमाम रंजिशें निगल गया ।।
अब पूछता नहीं है सुकूं कैसे आएगा ,
खुद पै यक़ीन आते सुकूं उसको मिल गया ।।
वो पौधे जो ‘ज़ाहिद‘ ने लगाए थे रेत पर ,
उनमें से एक पौधा बड़ा होके फल गया ।।
120496
Sunday, September 6, 2009
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कल उंगलियां पकड़ के भी गिरता था बार बार ,
ReplyDeleteये वो ही है जो हाथ लगाते उछल गया ।।
wah, bahut khoob , blog jagat men swagat hai.
इस बार वो तमाम रंजिशें निगल गया ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है जाहिद भाई। अच्छा ये बताएं कि यह कुमार जाहिद है या खुमार जाहिद है...
मेरे ब्लॉग पर भी आएं।
बेहतरीन …………सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteचिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.
गुलमोहर का फूल
nice.narayan narayan
ReplyDeletesir ,, sher bahut hi khubsurat hue hai .isko gazal is nahi kah sakte kyoki gazal me 5,7,9,11 aese sher hote hai .
ReplyDeletewese in sab baato ko me darkinaar karu or aaraam se padu to ye rachna waakayi lajawaab hai or aap achche gyaani lagte hai aapko ye sab samjhna bhi achcha nahi kuch anjaane me uch-nich hui ho to maaf karna,
Deepak "bedil"
http://ajaaj-a-bedil.blogspot.com
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है....
ReplyDeletehttp://www.alkagoel.com/index.html
बहुत खूब जनाब | लाजवाब | लिखते रहिये | ब्लोगिस्तान में आपका स्वागत है
ReplyDeletebhaut sunder rachna hai
ReplyDeletehttp://sanjaybhaskar.blogspot.com
bahut khub likha hai...
ReplyDeleteजब तक था वो नादान तो गफ़लत में मै भी था
wakaee...
uski nadani se hmare hoshiyari ne b liya hai sabak...
ab wo asal me nadaan hai aur hum bane nadan hoshiyar....
bahut achhi lagti hai aapki gazalen....
sabhi ka shukriya ..
ReplyDeleteghazal ka ganit padha nahin...dil ko ganit banaun to chalun...is dang se bhi sochunga...agar sheron ki ginti se ghazal ki bharti haa to qazi ko beemar nahin padhana chahiye...kalma padhan chahiye..
mein Kumar Zahid.