Friday, October 30, 2009

मेरे बिछुड़े हुए अफ़सोस

मेरे बिछुड़े हुए अफ़सोस

हाली लम्हे मेरे माज़ी से लिपटकर रो लें ।।
मैं ये चाहूं कि जागे साल रात भर सो लें ।।

ख्वाब सदियों के नदी बनके आंख से बहते ,
दर्द आएं हरे जख्मों की रिसन को धो लें ।।

खूब कोशिश में हैं कि जिन्दगी हमराज बने,
दौरेतारीक़ी में मुमकिन है मुट्ठियां खोले।

जो थे अपने वो गिले बनके दूर जा बैठे ,
मेरे बिछुड़े हुए अफ़सोस हमीं इक हो लें ।।

दिलका ’ज़ाहिद’ है नरम उसको होश कल का है ,
इसलिए चुप है वो मुमकिन है कभी ना बोले ।।
160505.

Tuesday, October 27, 2009

अपने होने की निशानी

फिर वो तहरीर पुरानी देखी ।
ठहरी नब्जों में रवानी देखी ।।

फिर बहुत देर आइना देखा ,
अपने होने की निशानी देखी ।।

आज आंखों में जैसे धूप खिली ,
क्या कोई चीज़ सुहानी देखी ।।

दिल में सांपों के बसेरे देखे ,
आह में रात की रानी देखी ।।

सादापन रोज़ बावला देखा ,
साज़िशें सदियों सयानी देखी।

रात का रंग दमकते देखा ,
झूमती गाती जवानी देखी ।।

आज ’ज़ाहिद’ के जब्त के भीतर ,
पीर की गश्तेज़हानी देखी ।।

17.0805.

Friday, October 23, 2009

सुबह का पता

ठहरी हुई है रात , सुबह का पता नहीं ।
कोई कहीं है बात , सुबह का पता नहीं ।

अंधी हुई हैं हलचलें ,गूंगी हैं हसरतें ,
कैसे मिले निजात , सुबह का पता नहीं ।

जिसकी हथेलियों की हिना ख्वाबदार थी ,
गुमसुम है वो हयात , सुबह का पता नहीं ।

खुद को चढ़ा लिया है सलीबों में आदतन ,
अच्छे नहीं हालात , सुबह का पता नहीं ।

जब्तोसुकूं से दूर हैं ’जाहिद’ के रात दिन ,
जख्मी हुए ज़ज़्बात , सुबह का पता नहीं ।
050805.241009

Saturday, October 17, 2009

मुहब्बत का वज़न मिलता नहीं

क्या पता अब बात क्या है मन से मन मिलता नहीं
भीड़ जब से बढ़ गई है अपनापन मिलता नहीं

बोझ है कितना दिलों पर सुस्त है जीने का ढंग
नाम बांकेलाल है पर बांकपन मिलता नहीं

चाहता हूं बांट दूं सारा जो धन है प्यार का
प्यार जिसको चाहिए ऐसा स्वजन मिलता नहीं

जरजमीनोजार के है सब दीवानावार यार
आदमी की चाह का दीवानापन मिलता नहीं

अब भी सुनते हैं पुकारो तो मगर बेमन से क्यों
क्या पुकारों में मुहब्बत का वज़न मिलता नहीं

हम जमाने से अलग हो दूर जाकर क्यों चलें
साथ चलने में कभी बेगानापन मिलता नहीं

हाथ ‘ज़ाहिद’ ने बढ़ाया है तो बढ़कर थाम लो
वर्ना पछताओगे मिलनेवाला जन मिलता नहीं

Wednesday, October 14, 2009

ईसा सब हाथ मलते देखें हैं

ज़र्रे अक्सर उबलते देखें हैं
दौरेहस्ती जो चलते देखे हैं

दूर तक रात है, गुमनामी है
रोज़ सौ सूर्य ढलते देखे है

पैरहन जिनके दागदार हुए
उनके रुतबे बदलते देखे हैं

चुरा सकते जो सुख जमाने के
नाम उनके उछलते देखे हैं

सारे जल्लाद हंसते देखे हैं
ईसा सब हाथ मलते देखे हैं

अब तबस्सुम में हैं शैतां बसते
दिल में यूं सांप पलते देखें हैं

खुशखयाली तो ख्वाब है‘ज़ाहिद’
शौक ये किसने फलते देखे हैं

Tuesday, October 13, 2009

अक्ल के अंधे

नींद आती नहीं है ,ख्वाब दिखाने आए ।।
अक्ल के अंधे गई रात जगाने आए ।।

जिस्म में जान नहीं है मगर रिवाज़ तो देख ,
चल के वैशाखी में ये देश चलाने आए ।।

बीच चैराहे में फिर कोई मसीहा लटका ,
मुर्दे झट जाग उठे ,लाश उठाने आए ।।

जिसको बांहों में ,बंद मुट्ठियों में रखना है ,
ऐसी इक चीज़ को ये अपना बनाने आए।।

कुुछ गए साल गए वक़्त का खाता लेकर ,
मेरे नामे पै चढ़ा क़र्ज़ बताने आए ।।

सर पै ’जाहिद’के हादिसों की यूं लाठी टूटी ,
जैसे अब सरफिरे की अक्ल ठिकाने आए ।।

Sunday, October 4, 2009

बोतलों में बंद पानी

पर्वतों चट्टान पर ठहरा नहीं ,स्वच्छंद पानी ।
लिख रहा बंजर पड़े मैदान पर ,नव-छंद पानी ।।

सभ्यता के होंठ पर दो बूंद तृप्ती छींटकर ,
बह नहीं सकता नदी सा ,बोतलों में बंद पानी ।।

है चमक आंखों में ,चेहरों में चमक है ,
इसलिए निर्मल कि रचता ,कुछ नहीं छल-छंद पानी ।।

आग की लपटों से लहरें ,होड़ ले लेकर लड़ें ,
जीत के इतिहास में रुतवा ,रखे बुलंद पानी ।।

रोज कितने फूटते हैं ,द्वैष के विष कूट-काले ,
डाल देता दहकते अंगार पर , आनंद पानी ।।

जब जहां दिल चाहता बस फूट पड़ता है वहां ,
कब कहां करता किसी से ,कोई भी अनुबंध पानी ।।

रिश्तों की दीवार हद उम्मीद निस्बत से है दूर
मां पिता‘जाहिद’किसी का है नहीं फरजंद पानी ।।

Friday, October 2, 2009

उम्मीद के चेहरे

सारे शहर में उसने तबाही सी बाल दी
अपना पियाला भरके सुराही उछाल दी

हमने उड़ाए इंतजार के हवा में पल
वो देर से आए ओ कहा जां निकाल दी

मां को पता था भूख में बेहाल हैं बच्चे
दिल की दबाई आग में ममता उबाल दी

जिस आंख में उम्मीद के चेहरे जवां हुए
बाज़ार की मंदी ने वो आंखें निकाल दी

नंगी हुई हैं चाहतें ,राहत हैं दोगली
‘ज़ाहिद’ किसी ने अंधों को जलती मशाल दी