ज़र्रे अक्सर उबलते देखें हैं
दौरेहस्ती जो चलते देखे हैं
दूर तक रात है, गुमनामी है
रोज़ सौ सूर्य ढलते देखे है
पैरहन जिनके दागदार हुए
उनके रुतबे बदलते देखे हैं
चुरा सकते जो सुख जमाने के
नाम उनके उछलते देखे हैं
सारे जल्लाद हंसते देखे हैं
ईसा सब हाथ मलते देखे हैं
अब तबस्सुम में हैं शैतां बसते
दिल में यूं सांप पलते देखें हैं
खुशखयाली तो ख्वाब है‘ज़ाहिद’
शौक ये किसने फलते देखे हैं
Wednesday, October 14, 2009
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zahid ji...
ReplyDeletebadhaee kubul karen...
कुछ यूँ निकालता जा रहा है दौरे-ऐ-जहाँ हमारे हाथ से...
लम्हे खुशहाल तो है फ़िर भी तारीखें धुध्लाने से लगी है...
aapne us sach ko samne laya hai jise hum aur aap jante hai bujhte hai,chidhte hai ,fir bhi jise sochna nahin chahte... jesus ko suli pe chadhaya to kuch mutthi bhar logon ne na...par us kaum ki bujdili ko hum kaise maaf kar den jisne apne maseeha ko yun suli par latakte dekh siway tensueen bahane ke kuch nai kiya...hum aap humsab ka farz hai ki apni apni jameen dhundhen aur us jameen ko khushhaal banaen...
khwab dekhen han to falenge bhi...aise hi likhte rahen... ummid milati hai ki ab sab kuch yun hi nazaron ke samne se gujar to nahin ja raha...har chij notice ki ja rahi hai...
kuch jyada kam kaha ho to maaf karen ...asal me mai abhi construction phase me hun jahan vicharon ki shrinkhala ne abhi tak koi dridh makam nahi liya hai... isliye meri kaee baaten vague ho sakati hai...
with best wishes...
behatareen khayalaat ke saath ek behatareen rachna. mubarak mubarak, mubarak.
ReplyDeleteज़र्रे अक्सर उबलते देखें हैं
ReplyDeleteदौरेहस्ती जो चलते देखे हैं
बहुत खूब.....!!
पैरहन जिनके दागदार हुए
उनके रुतबे बदलते देखे हैं
वाह.....!!
अब तबस्सुम में हैं शैतां बसते
दिल में यूं सांप पलते देखें हैं
जाहिद जी लाजवाब लिखते हैं आप .....!!
किस तरह शुकियां करूं अहबाबों का
ReplyDeleteहैं वो मेहराब मेरे तमाम ख्वाबों का।
पैरहन जिनके दागदार हुए
ReplyDeleteउनके रुतबे बदलते देखे हैं
चुरा सकते जो सुख जमाने के
नाम उनके उछलते देखे हैं
पूरी गज़ल लाजवाब है बधाई दीपावली की शुभकामनायें
दूर तक रात है, गुमनामी है
ReplyDeleteरोज़ सौ सूर्य ढलते देखे है
पैरहन जिनके दागदार हुए
उनके रुतबे बदलते देखे हैं
सारे जल्लाद हंसते देखे हैं
ईसा सब हाथ मलते देखे हैं
पूरी गज़ल लाजवाब है
दूर तक रात है, गुमनामी है
ReplyDeleteरोज़ सौ सूर्य ढलते देखे है
खुशखयाली तो ख्वाब है‘ज़ाहिद’
शौक ये किसने फलते देखे हैं
lajavab