मेरा दुश्मन बहुत चालाक ,हंसकर वार करता है।।
हमें जिस बात का डर है उसे इज़हार करता है।।
किसी का मैं नहीं हूं ,हो नहीं सकता , बताता है,
मैं जिनके दिल में हूं ,उनमें खड़ी दीवार करता है।।
मुसलसल ज़िन्दगी में क्यों लगी ठोकर बताता हूं ,
जमाना जादुई पत्थर से पथ तैयार करता है।।
हथेली पर हिना ,होंठों पै लाली , गाल पर सुर्ख़ी ,
शहर सारा कसाई की तरह श्रृंगार करता है।।
समझ आती नहीं है इश्क़ की तासीर कैसी है ,
कहीं सेहत बनाता है ,कहीं बीमार करता है।।
उसे पागल कहा जाता ,जो हंसता और रोता है
उसे दीवाना कहते हैं ,जो चुप दीदार करता है।।
यहां इंकार भी इक़रार है , इक़रार शुब्हा है ,
सज़ा ‘ज़ाहिद’ को होती है ,मज़ा संसार करता है।।
17.02.10
Monday, February 22, 2010
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बहुत ही लाजवाब रचना लगी , बधाई स्वीकार्य करें ।
ReplyDeleteहथेली पर हिना ,होंठों पै लाली , गाल पर सुर्ख़ी ,
ReplyDeleteशहर सारा कसाई की तरह श्रृंगार करता है।।
-क्या बात है!! वाह!
मुसलसल ज़िन्दगी में क्यों लगी ठोकर बताता हूं ,
ReplyDeleteजमाना जादुई पत्थर से पथ तैयार करता है।।
समझ आती नहीं है इश्क़ की तासीर कैसी है ,
ReplyDeleteकहीं सेहत बनाता है ,कहीं बीमार करता है।।
उसे पागल कहा जाता ,जो हंसता और रोता है
उसे दीवाना कहते हैं ,जो चुप दीदार करता है।।
यहां इंकार भी इक़रार है , इक़रार शुब्हा है ,
सज़ा ‘ज़ाहिद’ को होती है ,मज़ा संसार करता है।।
वाह भाई क्या बात है दिल खुश हो गया बहर ओर रुक्न भी लिख देते तो मजा दुगना हो जाता
आपका स्वागत है सुबीर संवाद सेवा के तरही मुशायरे में
ReplyDeleteगजल पढ़िए, गजल भेजिए
गजल की क्लास में शिरकत कीजिये
-वीनस
behatareen.
ReplyDeleteहथेली पर हिना ,होंठों पै लाली , गाल पर सुर्ख़ी ,
ReplyDeleteशहर सारा कसाई की तरह श्रृंगार करता है।।
बहुत लाजवाब
बहुर सुन्दर रचना
ReplyDeleteहर मिसरा उम्दा जितनी भी
आभार ..........
"उसे पागल कहा जाता ,जो हंसता और रोता है
ReplyDeleteउसे दीवाना कहते हैं ,जो चुप दीदार करता है।।"
क्या खूब ज़नाब । बेहतरीन । बधाई ।
मेरा दुश्मन बहुत चालाक ,हंसकर वार करता है।।
ReplyDeleteहमें जिस बात का डर है उसे इज़हार करता है।।
bahut khoob kahi hai zahid ji aapne ,jawab nahi har sher ka .
हथेली पर हिना ,होंठों पै लाली , गाल पर सुर्ख़ी ,
ReplyDeleteशहर सारा कसाई की तरह श्रृंगार करता है।।
उसे पागल कहा जाता ,जो हंसता और रोता है
उसे दीवाना कहते हैं ,जो चुप दीदार करता है।।
behad umda!
kya baat hai!
समझ आती नहीं है इश्क़ की तासीर कैसी है ,
कहीं सेहत बनाता है ,कहीं बीमार करता है।।
ise saath liye jati hun...simple magar gahan bhav liye hai!
****bahut hi khubsurat gazal hai har sher lajawab hai.
आपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteमोहतरम कुमार ज़ाहिद साहब, आदाब
ReplyDeleteपूरी ग़ज़ल बेहतरीन अश’आर से सजी है...
मतला-
मेरा दुश्मन बहुत चालाक ,हंसकर वार करता है।।
हमें जिस बात का डर है उसे इज़हार करता है।।
और ये शेर-
समझ आती नहीं है इश्क़ की तासीर कैसी है ,
कहीं सेहत बनाता है ,कहीं बीमार करता है।।
बहुत अच्छे लगे.
जज़्बात पर हौसला अफ़ज़ाई के लिये शुक्रिया.
मोहतरमोमोहतरमान आदाब!
ReplyDeleteआप तमाम क़द्रदां का दिल से शुक्रिया कि आप सब को यह ग़ज़ल इतनी पसंद आई । मुझे उम्मीद कतई नहीं थी कि आप मेरी इस गर्मजोशी से हौसलाअफ़जाई करेंगे।
आगे भी मुझे इस्सलाह करते रहें..
रंगों के त्यौहार होली की आप तमाम हजरात को रंगीन मुबारकवाद !
aapko bhi pavan parv ki dhero badhiyaan
ReplyDeleteबहुत उम्दा ग़ज़ल है। ख़ूब बात है कसाई वाली!
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