Tuesday, February 16, 2010

रास्ते मरमरी बांहें नहीं होते यारों !

जख्म जो दिल के छुपाने हों , मुस्कुराते चलो।
घोर बंजर में , बियाबां में लहलहाते चलो ।।

उम्र नाजुक है मगर दूर तलक जाएगी ,
बोझ कंधे बदल बदलके बस उठाते चलो ।।

रास्ते मरमरी बांहें नहीं होते यारों !
सम्हल सम्हल के चलो ,संतुलन बनाते चलो ।।

क़दम क़दम में यहां लोग-बाग भिड़ जाते ,
ये हैं अंधों का शहर लाठी ठकठकाते चलो ।।

मौत मंजर नहीं होती है, न सकते में रहो ,
कब्र के पास से गुजरो तो गुनगुनाते चलो ।।

शाख अच्छी नहीं लगती जो न झूमे झूले ,
तुम परिन्दों की तरह उड़ते चहचहाते चलो।।

क्यों रहें ख़ौफ़ के दरवाज़ों के पीछे ‘ज़ाहिद’,
हौसलों ! ज़ंग लगी कुंडी खड़खड़ाते चलो ।।

× कुमार ज़ाहिद ,मंगल ,16.02.10

8 comments:

  1. आपने तो ज़िन्दगी जीने का सलीखा सीखा दिया, ज़नाब । बहुत प्रेरित करती हुई गज़ल ।

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  2. क्यों रहें ख़ौफ़ के दरवाज़ों के पीछे ‘ज़ाहिद’,
    हौसलों ! ज़ंग लगी कुंडी खड़खड़ाते चलो ।।
    bahut achchhi gazal

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  3. Sundar Rachana...Zindgi ka saar hi bata diya aapne!
    Saadar
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  4. बहुत उम्दा गज़ल!

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  5. रास्ते मरमरी बांहें नहीं होते यारों !
    सम्हल सम्हल के चलो ,संतुलन बनाते चलो ।।

    मौत मंजर नहीं होती है, न सकते में रहो ,
    कब्र के पास से गुजरो तो गुनगुनाते चलो ।।
    bahut acchey

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  6. क्यों रहें ख़ौफ़ के दरवाज़ों के पीछे ‘ज़ाहिद’,
    हौसलों ! ज़ंग लगी कुंडी खड़खड़ाते चलो ।।

    सर जी बहुत समय बाद आप मेरे ब्लॉग पर आये और ऊपर से इतने दिल से लिखी प्रतिक्रिया, आभारी हूँ .आपकी हर ग़ज़ल सोचने को मजबूर करती है.किसी एक लाइन की तारीफ़ करूँ तो नाइंसाफी होगी हर बार आपकी ग़ज़ल पढ़ती हूँ और फिर कुछ कहने को शब्द कम पड़ जाते हैं

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  7. उम्र नाजुक है मगर दूर तलक जाएगी ,
    बोझ कंधे बदल बदलके बस उठाते चलो ।
    ---------------
    शाख अच्छी नहीं लगती जो न झूमे झूले ,
    तुम परिन्दों की तरह उड़ते चहचहाते चलो।।


    waah! waah!! waah!!!

    bahut hi khubsurat Ghazal!

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