Tuesday, March 2, 2010

साझे में नफ़रत

मैं जिन आंखों में मिल जाती मुहब्बत बस पिया करता।
कहां रंजेजफ़ा , फ़िक्रेतग़ाफुल मैं किया करता ।।

जहालत ही जहालत है , ज़हानत में जमाने की ,
मैं सदमे सह लिया करता , मैं आंसू पी लिया करता।।

नहीं रहबर हैं राहों में , रिवाजेरहज़नी हर सू ,
सभी धकियाते चलते हैं , मैं फिर भी चल लिया करता ।।

यहां साझे में नफ़रत होती है तो ख़ूब होती है।
कहीं भी प्यार साझे में कहां कोई किया करता।।

किसी से क्या करूं शिकवा ,किसे चिन्ता किसी की है ,
कभी ‘ज़ाहिद’ ज़ुबां खुलती तो उसको सी लिया करता ।।
190210

रंजेजफ़ा - जफ़ा का रंज, सितम का दुख।
फ़िक्रेतग़ाफुल - उपेक्षा की चिंता, वेतवव्जुही की परवाह।
जहालत - मूर्खता ,बेवकूफ़ी।
ज़हानत - ज़हन की तेज़ी, बौद्धिकता।
रहबर /राहबर- पथप्रदर्शक, अगुआ।
रिवाजेरहज़नी - रास्ते में लूट लेने का रिवाज।
हर सू - हर तरफ।

17 comments:

  1. ज़लालत ही ज़लालत है , ज़हानत में जमाने की ,
    मैं सदमे सह लिया करता , मैं आंसू पी लिया करता।।

    किसी से क्या करूं शिकवा ,किसे चिन्ता किसी की है ,
    कभी ‘ज़ाहिद’ ज़ुबां खुलती तो उसको सी लिया करता ।।
    वाह बहुत अच्छी लगी गज़ल। अगर उर्दू शब्दों का अर्थ भी साथ होता तो बहुत अच्छा था। कई शब्दों का अर्थ पता नही था। आभार

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  2. 'नहीं रहबर हैं राहों में , रिवाज़ेरहज़नी हर शूं ,
    सभी धकियाते चलते हैं , मैं फिर भी चल लिया करता ।।'

    वाह !वाह !!वाह !!!Amazing!!!!!!!!!!!!!!!!

    यहां साझे में नफ़रत होती है तो ख़ूब होती है।
    कहीं भी प्यार साझे में कहां कोई किया करता।।

    बेहद उम्दा!
    बहुत ही बहुत पसंद आई यह ग़ज़ल!

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  3. सर हमेशा की तरह एक अच्छी ग़ज़ल. पर क्या एक बात कहूँ ?? आप जैसे कई लोग या ज्यादातर सभी लोग ऐसे हैं जिनकी भाषा पर पकड़ बहुत मजबूत है.तो हम जैसे लोगों को समझने के में मुश्किल होती है. इस ग़ज़ल को पढ़ते हुए कई बार उर्दू शब्द कोष का इस्तेमाल करना पड़ा क्योंकि मेरे सर के ऊपर से जा रही थी लेकिन जब समझ आई तो बहुत बेहतरीन लगी
    आभार

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  4. निर्मला मेम, अल्पना जी और रचना जी,
    आपका तहेदिल से शुक्रिया कि आप ने इस कदर मेरी हौसला-अफजाई की।
    मुश्किल अलफाजों के मानी दुबारा आपके इशारे पर दिया है।

    रंजेजफ़ा - जफ़ा का रंज, सितम का दुख।
    फ़िक्रेतग़ाफुल - उपेक्षा की चिंता, वेतवव्जुही की परवाह।
    जहालत - मूर्खता ,बेवकूफ़ी।
    ज़हानत - ज़हन की तेज़ी, बौद्धिकता।
    रहबर /राहबर- पथप्रदर्शक, अगुआ।
    रिवाजेरहज़नी - रास्ते में लूट लेने का रिवाज।
    हर सू - हर तरफ।

    इस्सलाह से मुझे यह सलीका आया कि मैं जल्दबाजी में कोई भी पोस्ट न किया करूं। आइन्दा शिकायत नहीं होगी इस उम्मीद के साथ
    गुस्ताखियों के लिए पेशगी मुआफीनामा....

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  5. ये अच्छा रहा कि मुश्किल अलफाज़ों के अर्थ दे दिये..आभार!

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  6. meri baat pr gaur karne ke liye aur dobaara takliif uthane ke liye shukriya

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  7. कुमार ज़ाहिद साहब, आदाब

    जहालत ही जहालत है , ज़हानत में जमाने की..
    ....
    बेहतरीन ग़ज़ल के खूबसूरत शेर का लाजवाब मिसरा.

    यहां साझे में नफ़रत होती है तो ख़ूब होती है।
    कहीं भी प्यार साझे में कहां कोई किया करता।।

    शानदार शेर
    इसके पहले मिसरे में नफ़रत पर अनचाही सी अटक महसूस हुई.
    हालांकि मिसरा बहर में भी लग रहा है....

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  8. ज़ाहिद साहब,अदाब अर्ज़ है ,
    आप को पहली बार पढ़ रही हूं और ज़बान की शाइस्तगी ने दिमाग़ के रौज़न ओ दर खोल दिए हैं ,
    मैं जिन आंखों में मिल जाती मुहब्बत बस पिया करता।
    कहां रंजेजफ़ा , फ़िक्रेतग़ाफुल मैं किया करता ।।

    जहालत ही जहालत है , ज़हानत में जमाने की ,
    मैं सदमे सह लिया करता , मैं आंसू पी लिया करता।।

    बेहद उम्दा अशआर ,ख़ूब्सूरत ख़यालात ख़ूबसूरत अदाएगी
    जहालत............
    इस शेर में जहालत और ज़हानत का इस अन्दाज़ में एक दूसरे के साथ आना आप की तख़्लीक़ी क़ाबिलियत का इज़हार करता है

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  9. शुक्रिया दोस्तों! दोस्तों शुक्रिया !!
    आपकी शक्ल में दोजहां पा लिया !!!

    आदाब दोस्तों!
    बस इसी तरह हौसलाअफ़जाई और इस्सलाह करते रहें ताकि मैं शायरी की शान में ग़ुस्ताख़ी न कर सकूं

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  10. जाहिद जी ...हर शे'र लाजवाब है .....

    जहालत ही जहालत है , ज़हानत में जमाने की ,
    मैं सदमे सह लिया करता , मैं आंसू पी लिया करता।।
    वाह....वाह.......!!
    नहीं रहबर हैं राहों में , रिवाजेरहज़नी हर सू ,
    सभी धकियाते चलते हैं , मैं फिर भी चल लिया करता ।।

    बहुत खूब .......!!
    यहां साझे में नफ़रत होती है तो ख़ूब होती है।
    कहीं भी प्यार साझे में कहां कोई किया करता।।

    लाजवाब.......!!
    किसी से क्या करूं शिकवा ,किसे चिन्ता किसी की है ,
    कभी ‘ज़ाहिद’ ज़ुबां खुलती तो उसको सी लिया करता ।।

    जुबां सी होती है तो कलम बोलती है ......!!

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  11. यहां साझे में नफ़रत होती है तो ख़ूब होती है।
    कहीं भी प्यार साझे में कहां कोई किया करता।।

    aha kya khoob sher kahe hain aapne
    pahli dafa padha aur ham kayal ho gaye

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  12. zahid ji,blog par aane ke liye aabhar,jis tarah ki rachnaayen aap likhte hai,is tarah ki adaygi mujhe hamesha se aakarshit karti aayi hai,halaki meri urdu shbdon tak pahunch abhi na ke barabar hai,par ye jayka mujhe bahut pasand hai.koshish rahegi yahan aati rehun..

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  13. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है -
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    बहुत बढ़िया और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है ! बधाई!

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  14. जहालत ही जहालत है , ज़हानत में जमाने की ,
    मैं सदमे सह लिया करता , मैं आंसू पी लिया करता।।
    bahut hi shaandaar
    यहां साझे में नफ़रत होती है तो ख़ूब होती है।
    कहीं भी प्यार साझे में कहां कोई किया करता।।
    bahut hi shaandaar baat kah gaye ,

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  15. साझे में नफ़रत - कमाल है!
    ख़ूब - बहुत ख़ूब, आख़िर 'ज़ाहिद' जो हैं।

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  16. जुबां सी होती है तो कलम बोलती है ...

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