ख्वाब तुम देखो कि मैं नभ पर चमककर छाउंगा ।।
प्यार की बदली बनूंगा , आंख में भर जाउंगा ।।
इतने स्थापित हो तुम कि चाहकर ना हिल सको ,
मैं हवा हूं सांस भी खींचो तो खिंचकर आउंगा ।।
मैं तली में याद के टुकड़े की मानिंद हूं पड़ा ,
तुम खंगालोगे तो मैं उठकर सतह पर आउंगा ।।
इम्तिहां की राह में दीवार ना पैदा करो ,
चाह हो तो मैं हिमालय से पिघलकर आउंगा ।।
हज़ से लौटा हूं अभी ‘जाहिद’ अभी प्याला न दो ,
चार छः दिन ज़्यादा से ज़्यादा सबर कर पाउंगा ।।
4.3.10/11.03.10
Wednesday, April 28, 2010
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अरे वाह भई दिल खुश कर दिया
ReplyDeleteमतला पढा अच्छा लगा दूसरा शेर और अच्छा तीसरा और अच्छा चौथा उम्दा और मकता पढ़ कर तो दिल, दिमाग, मन सब झूम गया
बहरो वजन की बात तो श्रेष्ठ जन ही बताएँगे
हमें तो कहन ने इतना मुतासिर कर दिया कि मन बाग बाग हो गया
इतने स्थापित हो तुम कि चाहकर ना हिल सको ,
मैं हवा हूं सांस भी खींचो तो खिंचकर आउंगा ।।
वाह क्या बात कही मजा आ गया
दिली दाद कबूल करें
मैं तली में याद के टुकड़े की मानिंद हूं पड़ा ,
ReplyDeleteतुम खंगालोगे तो मैं उठकर सतह पर आउंगा ।।
Naya prog hai sir ..wah wah wah
इतने स्थापित हो तुम कि चाहकर ना हिल सको ,
मैं हवा हूं सांस भी खींचो तो खिंचकर आउंगा ।।
bina lag laoet ke dotook bat..Kya bat hai..
इम्तिहां की राह में दीवार ना पैदा करो ,
चाह हो तो मैं हिमालय से पिघलकर आउंगा ।।
laaaaajawaab..oho wah wah
वाह .. बहुत खूब !!
ReplyDeleteustad ji..bahut khoob :)
ReplyDeleteहज़ से लौटा हूं अभी ‘जाहिद’ अभी प्याला न दो ,
ReplyDeleteचार छः दिन ज़्यादा से ज़्यादा सबर कर पाउंगा ।।
वाह !!!!!!!!! क्या बात है..... अच्छी है ग़ज़ल .शानदार जानदार और क्या कहूँ..........
laajawab..!
ReplyDeletehum yon hi aapke murid nahin hain...likhte rahie...
चार-छह दिन ज़्यादा से ज़्यादा सबर कर पाउंगा,
ReplyDeleteकोई बात नहीं - दो दिन तो हो ही गए हैं, अब अगली ग़ज़ल कब आ रही है?
सबर हमसे भी नहीं हो रहा जनाब!
'मैं तली में याद के टुकड़े की मानिंद हूं पड़ा ,
ReplyDeleteतुम खंगालोगे तो मैं उठकर सतह पर आउंगा ।।'
क्या बात कही है!वाह!वाह!
-पूरी गज़ल ही बेहद खूबसूरत लगी.
bahut khub
ReplyDeletebadhai is ke liye aap ko
इतने स्थापित हो तुम कि चाहकर ना हिल सको ,
ReplyDeleteमैं हवा हूं सांस भी खींचो तो खिंचकर आउंगा ।।
मैं तली में याद के टुकड़े की मानिंद हूं पड़ा ,
तुम खंगालोगे तो मैं उठकर सतह पर आउंगा ।।
वाह हर she'r बहुत khngalne के baad likha jaan padta है .....!!
क्या बात है. बहुत खूब.
ReplyDeleteमैं हवा हूं सांस भी खींचो तो खिंचकर आउंगा ।।
ReplyDelete-
चाह हो तो मैं हिमालय से पिघलकर आउंगा ।।
...वाह वाह !!
मैं तली में याद के टुकड़े की मानिंद हूं पड़ा ,
ReplyDeleteतुम खंगालोगे तो मैं उठकर सतह पर आउंगा ।
वाह भाई वाह...क्या बात कही है...कमाल की ग़ज़ल...दाद कबूल हो...
नीरज
बहुत दिन हो गए तो फिर आया
ReplyDeleteकुछ नया हो तो कुछ मज़ा आए
आज जाता हूँ लौट कर लेकिन
दुआ है कुछ तो मुद्दआ आए
himanshuji,
ReplyDeletemazaa intezar ka hai chakh leejiye
mazaa phir mazaa hai mazaa leejiye
behtarin zahid ji, behad umda, bahut he achcha likha hai, badhaaiyan :)
ReplyDeleteamit~~