बारिश की बारदात।
कुछ भी नया नहीं है, वहीं दिन है, वही रात !
उनसे कहूं तो कैसे कहूं कोई नयी बात !!
पूनम की रात , चांद के माथे पै अंधेरा ,
मुझको लगा अदा से हुई जुल्फों की बरसात ।
बादल की चादरों से झांकती है चांदनी ,
शायद ग़ज़ल है आसमां की गोद में नवजात!
सौ मील की रफ़्तार थी तूफ़ानेजोश में ,
घर को उजाड़कर गई , बारिश की बारदात।
‘ज़ाहिद’ लगे उम्मीद रुदाली है आजकल ,
खुशियों में अश्क बनके टपक पड़ते हैं जज्बात ।
27.6.10
मैं तो दरिया हूं नये ख्वाब का ,बहने आया ।।
‘क्यों है खाली तेरा घर’, कोई ना कहने आया ।
तू गया छोड़ के तो कोई ना रहने आया ।।
मैं कभी इश्क़ की फ़रमाइशें नहीं करता,
मैं तो दरिया हूं नये ख्वाब का , बहने आया ।।
‘हां’ के आईने में परदे हैं सौ बहानों के ,
कोई भी लफ़्ज़ कहां सादगी पहने आया ।?
गुम हुई हंसती खिलखिलाती हुई ताजा़ हवा ,
वक़्त सब शौक के उतारकर गहने आया ।।
मेरे आंसू या पसीने को न पोंछो ‘ज़ाहिद’,
जो भी हिस्से में मिरे आए मैं सहने आया ।।
30.6.10
इसरार: इस बार दो ग़ज़ल एक साथ पढ़ने की तकलीफ़ आपको होगी। पर क्या करूं दोनों का एक साथ देना मेरी मज़बूरी है।
पहली ग़ज़ल तब बनी जब इस तरफ़ तबाही मचाता हुआ तूफान आया और बारिश भी। जानोमाल के नुकसान जो हुए सो हुए ही , तीन दिन तक बिजली भी न आ सकी। एक दिन की बारिश से इतनी ठंडक भी नहीं पड़ी थी कि ऊमस न रहे। इसी बीच मेरे अपने को वापस लौटना भी था । दूसरी ग़ज़ल तब अपने आप हो गई। मुलाहिज़ा फरमाएं और इसला करें।
Friday, July 23, 2010
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बादल की चादरों से झांकती है चांदनी ,
ReplyDeleteशायद ग़ज़ल है आसमां की गोद में नवजात!
..................................
हां’ के आईने में परदे हैं सौ बहानों के ,
कोई भी लफ़्ज़ कहां सादगी पहने आया ।?
............................
zahid ji...har lafz karishma hai
dono hi nazm nayab hai..kya likhte hai aap
aapke is jajbe ko salaam!!
दोनों गज़ल अपने आप में खूबसूरती से कही हैं...
ReplyDeleteमेरे आंसू या पसीने को न पोंछो ‘ज़ाहिद’,
ReplyDeleteजो भी हिस्से में मिरे आए मैं सहने आया ।।
एक से बढ़ कर एक और बेमिसाल
‘हां’ के आईने में परदे हैं सौ बहानों के ,
ReplyDeleteकोई भी लफ़्ज़ कहां सादगी पहने आया ।?
गुम हुई हंसती खिलखिलाती हुई ताजा़ हवा ,
वक़्त सब शौक के उतारकर गहने आया ।।
बहुत खूब ||.....
पहली बार आपकी ब्लॉग पे
बहुत अच्छा लगा ...
मैं कभी इश्क़ की फ़रमाइशें नहीं करता,
ReplyDeleteमैं तो दरिया हूं नये ख्वाब का , बहने आया ।।
मेरे आंसू या पसीने को न पोंछो ‘ज़ाहिद’,
जो भी हिस्से में मिरे आए मैं सहने आया ।।
सुभानाल्लाह ......!!
एक- एक शे'र चुन चुन कर लाते हैं .......
आपकी शान में ......
तू दरिया है वक़्त की रवानगी का
डूब गया तुझमें जो भी रोकने आया
सौ मील की रफ़्तार थी तूफ़ानेजोश में ,
ReplyDeleteघर को उजाड़कर गई , बारिश की बारदात।
क्या मंज़रकशी की है तूफ़ान की
मेरे आंसू या पसीने को न पोंछो ‘ज़ाहिद’,
जो भी हिस्से में मिरे आए मैं सहने आया ।।
वाह!
बिल्कुल सही है सब को अपने हिस्से के दुख झेलने ही पड़ते हैं
बादल की चादरों से झांकती है चांदनी ,
ReplyDeleteशायद ग़ज़ल है आसमां की गोद में नवजात!
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‘हां’ के आईने में परदे हैं सौ बहानों के ,
कोई भी लफ़्ज़ कहां सादगी पहने आया
दोनों ग़ज़लें निहायत खोबसूरत है...मैं देर से पहुंचा उम्मीद है गुस्सा नहीं होंगे...कई बार भूल हो जाती है लेकिन आपकी ग़ज़लें नहीं पढने से मुझे ही अधिक नुक्सान हुआ क्यूँ के मैं ही इतने खूबसूरत अशआरों से इतने दिनों दूर रहा...खैर देर आयद दुरुस्त आयद...ऐसे ही लिखते रहिये और मेरी दाद कबूल कीजिये...
नीरज
एक गज़ल उस दिन पढ़ नहीं पाया था ,
ReplyDeleteआज पढने आया || आप तो उसादों के उस्ताद है ,
कमाल का लिखते हैं || हर शेर सीधे दिल में उतर जाता है ||
बादल की चादरों से झांकती है चांदनी ,
शायद ग़ज़ल है आसमां की गोद में नवजात!
सौ मील की रफ़्तार थी तूफ़ानेजोश में ,
घर को उजाड़कर गई , बारिश की बारदात।
वाह , मज़ा आ गया ||
अच्छी ग़ज़लें ! बधाई !
ReplyDeletebahut umda ghazal...
ReplyDeletemere naye blog par aapka sawagat hai..apna comment dena mat bhooliyega...
http://asilentsilence.blogspot.com/
दोनो गज़लें बेहद खूबसूरत हैं बधाई
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