परिन्दे हौसलों के आसमां को नाप आते हैं।
जहां तूफ़ान ने तोड़ा वहीं पर घर बनाते हैं।।
गो गिद्धों से भरी है खौफ़ की बेदर्द ये दुनिया,
हंसी होंठों पै लेकर हम जहां को मुंह चिढ़ाते हैं।।
उन्हें हर बात पर दुनिया के मर मिटने की हसरत है,
नज़र जब इश्क़ की पड़ती है तो नज़रें चुराते हैं।।
मुझे वो चाहते हैं बस ज़रा कहने से डरते हैं ,
मुहब्बत तोड़ती है दिल , सहमकर दिल बचाते हैं।
हुनर कुछ भी नहीं है बस ज़रा औज़ारबाज़ी है,
तुम्हारे ख्वाब के सोने से हम गहने बनाते हैं।।
यक़ीन है दोस्ती पर ,पर जरा दुनिया से डरते हैं
ये दुनिया दोस्तों की है , मेरे दुश्मन बताते हैं।
न फूलों के हसीं गुलशन ,ना बागीचे ,न दहकां हैं ,
पड़े बंजर में ‘ज़ाहिद’ मौज़ के कौवे उड़ाते हैं।।
27.07.10, 5810, 5.8.10
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परिन्दे हौसलों के आसमां को नाप आते हैं।
ReplyDeleteजहां तूफ़ान ने तोड़ा वहीं पर घर बनाते हैं।।
Parindon ke hausale parindehi jaane!
Rachana to nihayat khoobsoorat hai!
उन्हें हर बात पर दुनिया के मर मिटने की हसरत है,
ReplyDeleteनज़र जब इश्क़ की पड़ती है तो नज़रें चुराते
waah zahid ji.....umda!
Kya Gazal hai....Ekdam jhakaas.
ReplyDeleteन फूलों के हसीं गुलशन ,ना बागीचे ,न दहकां हैं ,
ReplyDeleteपड़े बंजर में ‘ज़ाहिद’ मौज़ के कौवे उड़ाते हैं।।
laajawab sir ji.. hats off to u..!!!
मोह्तरम जनाब कुमार ज़ाहिद साहब
ReplyDeleteआदाब अर्ज़ !
क्या मुरस्सा ग़ज़ल है हुज़ूर !
लफ़्ज़ों के नगीने जड़ दिए हैं ।
पूरी ग़ज़ल कोट करने लायक है …
गो गिद्धों से भरी है खौफ़ की बेदर्द ये दुनिया,
हंसी होंठों पै लेकर हम जहां को मुंह चिढ़ाते हैं।।
कीचड़ में कमल का एक अछूता रूप है …
वाह वाऽऽह !
हुनर कुछ भी नहीं है बस ज़रा औज़ारबाज़ी है,
तुम्हारे ख्वाब के सोने से हम गहने बनाते हैं।।
क्या बात है जनाब !
हमारा तो धंधा ख़तरे में लगने लगा है ।
वाकई , ग़ज़ल तो ये होती है ।
प्रेरणाएं ले रहे हैं आपसे …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह वाऽऽह !
ReplyDeleteक्या बात है
न फूलों के हसीं गुलशन ,ना बागीचे ,न दहकां हैं ,
ReplyDeleteपड़े बंजर में ‘ज़ाहिद’ मौज़ के कौवे उड़ाते हैं।।
ग़ज़ल की इक इक बात को महसूस कर रही हूँ और क्या लिखूं .....
हुनर कुछ भी नहीं है बस ज़रा औज़ारबाज़ी है,
ReplyDeleteतुम्हारे ख्वाब के सोने से हम गहने बनाते हैं।।
bahut khoob!!!!
zaahid bhaayi.....vaah.....irshad....aur padhiye naa....
ReplyDeletewah! wah!
ReplyDeletebehad sunder :D
http://liberalflorence.blogspot.com/
bahut achha
ReplyDeleteaap mere blog m aaye n aapne mera margdarsan kiya aapko bahut dhanyvad
bas isi tarah apna aashish banaye rakhe
dhanyvad
भाई जाहिद आप गजलेँ अच्छी कहतेँ हैँ।कमेँट करने का तरीका पसन्द आया।
ReplyDeleteHi Zahid,
ReplyDeleteIt's a wonderful creation. Am short of words to say anything about it. The lines have beautifully defined the realities [ bitter rather ]. Each and every couplet is so perfect that there is nothing left to say beyond it.
I very much liked the poem/ghazal
Regards,
..
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteEid mubarak ho! Aapki har tamanna poori ho aur daman me khushiyan chhalak uthen!Aameen!
ReplyDeleteपरिन्दे हौसलों के आसमां को नाप आते हैं।
ReplyDeleteजहां तूफ़ान ने तोड़ा वहीं पर घर बनाते हैं।।
कितने हौसले का शेर है...वाह
यक़ीन है दोस्ती पर ,पर जरा दुनिया से डरते हैं
ये दुनिया दोस्तों की है , मेरे दुश्मन बताते हैं।
कमाल का शेर है जनाब.
ईद की मुबारकबाद.
हुनर कुछ भी नहीं है बस ज़रा औज़ारबाज़ी है,
ReplyDeleteतुम्हारे ख्वाब के सोने से हम गहने बनाते हैं।।
kya baat hai.Bahut Khub.
Eid Mubarak.
परिन्दे हौसलों के आसमां को नाप आते हैं।
ReplyDeleteजहां तूफ़ान ने तोड़ा वहीं पर घर बनाते हैं।।
sahi likha aapne kyonki hausla se hi kuchh bhi kaam ko anjaam diya ja sakta hai ........
गो गिद्धों से भरी है खौफ़ की बेदर्द ये दुनिया,
ReplyDeleteहंसी होंठों पै लेकर हम जहां को मुंह चिढ़ाते हैं।।
यही वो बात है जिससे लोग चूक जाते हैं। प्रायः कठिन सिद्धि है यह।
मुझे वो चाहते हैं बस ज़रा कहने से डरते हैं ,
मुहब्बत तोड़ती है दिल , सहमकर दिल बचाते हैं।
पर बचता कहां है कुछ भी । वो कहते हैं न इश्क पर जोर नहीं है ...
हुनर कुछ भी नहीं है बस ज़रा औज़ारबाज़ी है,
ReplyDeleteतुम्हारे ख्वाब के सोने से हम गहने बनाते हैं।।
वाह...वाह....!!
.गज़ब का शे'र कहा है जाहिद जी ......!!
लाजबाब लिखा है ।
ReplyDeleteपरिन्दे हौसलों के आसमां को नाप आते हैं।
ReplyDeleteजहां तूफ़ान ने तोड़ा वहीं पर घर बनाते हैं।
वाह!
बहुत ख़ूबसूरत मतला है
इस बलंद हौसले का जवाब नहीं ,इस जज़्बे को सलाम
हुनर कुछ भी नहीं है बस ज़रा औज़ारबाज़ी है,
ReplyDeleteतुम्हारे ख्वाब के सोने से हम गहने बनाते हैं।।
वाह!वाह! क्या खूब लिखा है आप ने!
पूरी ग़ज़ल ही खूबसूरत कही है.
परिन्दे हौसलों के आसमां को नाप आते हैं।
ReplyDeleteजहां तूफ़ान ने तोड़ा वहीं पर घर बनाते हैं।।
हुनर कुछ भी नहीं है बस ज़रा औज़ारबाज़ी है,
तुम्हारे ख्वाब के सोने से हम गहने बनाते हैं।।
कुमार साहब सबसे पहले तो इतनी देर से यहाँ दस्तक देने पर तहे दिल से शर्मिंदा हूँ...न जाने कैसे आपकी ये पुरअसर गज़ल मेरी नज़रों से चूक गयी...उम्मीद है मुझे इस देरी से माफ करेंगे.
ग़ज़ल के मतले से मकते तक का सफर निहायत खूबसूरत है, आपने कमाल के शेर कहें हैं...मेरी दिली दाद कबूल करें..
नीरज
bahut sunder.
ReplyDeleteगो गिद्धों से भरी है खौफ़ की बेदर्द ये दुनिया,
ReplyDeleteहंसी होंठों पै लेकर हम जहां को मुंह चिढ़ाते हैं ..
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है .... ये शेर तो ख़ास कर पाबूत पसंद आया ... ऐसे ही जीना चाहिए ....
उन्हें हर बात पर दुनिया के मर मिटने की हसरत है,
ReplyDeleteनज़र जब इश्क़ की पड़ती है तो नज़रें चुराते हैं।।
मुझे वो चाहते हैं बस ज़रा कहने से डरते हैं ,
मुहब्बत तोड़ती है दिल , सहमकर दिल बचाते हैं।
हुनर कुछ भी नहीं है बस ज़रा औज़ारबाज़ी है,
तुम्हारे ख्वाब के सोने से हम गहने बनाते हैं।।
wakai sabne sahi farmaaya poori gazal hi laazwaab hai aapki ,man ko chhoo gayi .
बहुत खूब लिखते हैं आप ,पहली बार पढ़ा ,अच्छा लगा । शुभकामनायें
ReplyDeleteshukriya zahid ji :)
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