दोस्तों आदाब! बहुत देर से आने की ग़ुस्ताख़ी मुआफ़ हो..कुछ है बात जो कभी ग़ज़ल में शाया होगी..इस नाच़ीज़ सी ग़ज़ल से शायद कुद संजीदाहाल खुले..
कभी बेवजह मुस्कुराकर तो देखो ।
खुशी के ख़ज़ाने लुटाकर तो देखो ।।
हरी रेशमी सांस की सरजमीं में ,
मुहब्बत के बूटे लगाकर तो देखो ।।
मसीहे मिलेंगे तुम्हें दोस्ती के ,
रकीबों को घर में बुलाकर तो देखो ।।
जवां ज़िन्दगी के तराने मिलेंगे ,
ख़्वाबों की तितली उड़ाकर तो देखो ।।
हमीं हैं , हमीं हैं , हमीं हम हमेशा ,
किताबों से गर्दे हटाकर तो देखा ।।
तुनकती हुई हर खुशी को खुशी से ,
ज़रा खींचकर गुदगुदाकर तो देखो ।।
बनेगी नयी लय सजेगा नया सुर ,
कि‘ज़ाहिद’ की धुन गुनगुनाकर तो देखो ।।
20.10.2010
कुछ दोस्तों के नये नये तकाज़ों के साथ ...कुछ और बातें ...पेश हैं
Thursday, November 11, 2010
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