दोस्तों आदाब! बहुत देर से आने की ग़ुस्ताख़ी मुआफ़ हो..कुछ है बात जो कभी ग़ज़ल में शाया होगी..इस नाच़ीज़ सी ग़ज़ल से शायद कुद संजीदाहाल खुले..
कभी बेवजह मुस्कुराकर तो देखो ।
खुशी के ख़ज़ाने लुटाकर तो देखो ।।
हरी रेशमी सांस की सरजमीं में ,
मुहब्बत के बूटे लगाकर तो देखो ।।
मसीहे मिलेंगे तुम्हें दोस्ती के ,
रकीबों को घर में बुलाकर तो देखो ।।
जवां ज़िन्दगी के तराने मिलेंगे ,
ख़्वाबों की तितली उड़ाकर तो देखो ।।
हमीं हैं , हमीं हैं , हमीं हम हमेशा ,
किताबों से गर्दे हटाकर तो देखा ।।
तुनकती हुई हर खुशी को खुशी से ,
ज़रा खींचकर गुदगुदाकर तो देखो ।।
बनेगी नयी लय सजेगा नया सुर ,
कि‘ज़ाहिद’ की धुन गुनगुनाकर तो देखो ।।
20.10.2010
कुछ दोस्तों के नये नये तकाज़ों के साथ ...कुछ और बातें ...पेश हैं
Thursday, November 11, 2010
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Jitni samajh aayi utni pasand bhi aayi.. pls urdu shabdo k meaning bhi label me dia karein jis se nasamajh bhi samajh sakein :)
ReplyDeleteहरी रेशमी सांस की सरजमीं में
ReplyDeleteमुहब्बत के बूटे लगाकर तो देखो'
वाह! वाह! बेहद खूबसूरत शेर!
तुनकती हुई हर खुशी को खुशी से
ज़रा खींचकर गुदगुदाकर तो देखो
बहुत खूब!क्या बात कही है...वाह!
हमीं हैं हमीं हैं हमीं हम हमेशा
ReplyDeleteकिताबों से गर्दे हटाकर देखो
बनेगी नयी लय सजेगा नया सुर
‘ज़ाहिद’ की धुन गुनगुनाकर तो देखो
waah bahut khoob .. zahid sahaab ...
बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल,,...
ReplyDeleteहरी रेशमी सांस की सरजमीं में
मुहब्बत के बूटे लगाकर तो देखो ||
जाहिद भाई आपका लेखन काफी सराहनीय है | यूँ ही लिखती रहें | मेरे ब्लॉग में इस बार आशा जोगलेकर जी की रचना |
सुनहरी यादें :-4 ...
हरी रेशमी सांस की सरजमीं में
ReplyDeleteमुहब्बत के बूटे लगाकर तो देखो ||
बनेगी नयी लय सजेगा नया सुर
‘ज़ाहिद’ की धुन गुनगुनाकर तो देखो
सही बात है गुनगुना रहे हैं।
वाह हर एक शेर लाजवाब।
बधाई इस गज़ल के लिये।
हरी रेशमी सांस की सरजमीं में
ReplyDeleteमुहब्बत के बूटे लगाकर तो देखो
Harek pankti...har sher lajawaab hai!
बहत खूबसूरत ग़ज़ल. हर एक शेर बेमिसाल. अजी हम तो हर बार पहुँच ही जाते हैं आपकी धुन गुनगुनाने.....
ReplyDeleteतुनकती हुई हर खुशी को खुशी से
ReplyDeleteज़रा खींचकर गुदगुदाकर तो देखो
सुभान अल्लाह...बेहतरीन गज़ल...हाँ मिसरों में कहीं कहीं आप तो लफ्ज़ टाइप करना भूल गए हैं...ठीक कर लें...
सारे अशआर पसंद आये...सभी में ताज़गी है...वाह, दाद कबूल करें.
नीरज
नीरज भाई ! बहुत बहुत शुक्रिया ..सचमुच कितनी भूल हो गई
ReplyDeleteटाइपिंग मिस्टेक ...ओफ्फो
अभी टाइप करता हूं..
हरी रेशमी सांस की सरजमीं में
ReplyDeleteमुहब्बत के बूटे लगाकर तो देखो
वाह...वाह
हमीं हैं हमीं हैं हमीं हम हमेशा
किताबों से गर्दे हटाकर तो देखो
हासिले-ग़ज़ल शेर.
तुनकती हुई हर खुशी को खुशी से
ज़रा खींचकर गुदगुदाकर तो देखो
बहुत उम्दा....हर शेर.
beautiful!
ReplyDeleteहमीं हैं हमीं हैं हमीं हम हमेशा
ReplyDeleteकिताबों से गर्दे हटाकर तो देखो
वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल और उम्दा शेर .... मज़ा आ गया ...
आपको और आपके पूरे परिवार को ईद मुबारक ..
अरे रे रे रे................
ReplyDeleteमक्ता में मिसरा सानी बहर से हट गया.
बाकी ग़ज़ल प्यारी है.
ऐसे करने पर विचार करें:-
बनेगी नयी लय सजेगा नया सुर
कि ज़ाहिद को भी गुनगुनाकर तो देखो
हरी रेशमी सांस की सरजमीं में
ReplyDeleteमुहब्बत के बूटे लगाकर तो देखो
बहुत खूब .....!!
सांसों में मोहब्बत के बूते ....क्या baat है....!
.....बहुत sunder .....
बनेगी नयी लय सजेगा नया सुर
‘ज़ाहिद’ की धुन गुनगुनाकर तो देखो
ओये होए .....!!
zahid जी matla तो kmaal ka है .....!!
आपकी ग़ज़ल हमेशा ही लुभाती है. आपने बुलाया गुगुनाने को मैं हाजिर हो गई आभार
ReplyDeleteमसीहे मिलेंगे तुम्हें दोस्ती के ,
ReplyDeleteरकीबों को घर में बुलाकर तो देखो ।।
बढ़िया ग़ज़ल..बधाई हो
bahut sunder gajal hai aapki
ReplyDeleteblog mai aane ko aabhar kripya yuhi margdarshan karte rahe
dhanyvad
कभी बेवजह मुस्कुराकर तो देखो ।
ReplyDeleteखुशी के ख़ज़ाने लुटाकर तो देखो ।। behd hsin hain aapki ghjale !
bahut sunder lagi.
ReplyDeleteसच में गुनगुनाने वाली गजल।
ReplyDeleteकभी बेवजह मुस्कुराकर तो देखो ।
ReplyDeleteखुशी के ख़ज़ाने लुटाकर तो देखो ।।
क्या पंक्तियाँ हैं ..एक दम दिल को छूने वाली ........शुभकामनायें
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
तुनकती हुई हर खुशी को खुशी से ,
ReplyDeleteज़रा खींचकर गुदगुदाकर तो देखो ।।
बहुत सुन्दर.
एक अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई।
ReplyDeleteएक सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई...भाई!
ReplyDeleteतुनकती हुई हर खुशी को खुशी से ,
ReplyDeleteज़रा खींचकर गुदगुदाकर तो देखो ।।
waah waah