जिनका भरोसा इश्क पर है और जो साबुतदिल है , उनसे मुआफ़ी चाहता हूं.
हालात का मारा समझ कर इसे पढ़ियेगा।
बस करबटें बेचैनियां और बेबसी रही ।।
लानत है ऐसे इश्क को जिसमें खुशी नहीं।
ज्यौं ज्यौं हुई वो दूर तो सुलगा तमाम जिस्म,
शीशे की आंखें देनी थी पर आतशी नहीं।
हंसता नहीं हूं बेसबब, बेवक़्त, हरजगह,
दिल का कोई हुनर मिरा फ़रमाइशी नहीं।
बढ़ती गई जो धूप तो मैं भी सिमट गया,
भड़की तपन से चाहता रस्काकसी नहीं।
गुलज़ार आरज़ी है ये, गुल तोड़ना मना ,
तफ़रीहगाह शहर है रिहायसी नहीं।
क़ुदरत मुमानिअत का मदरसा नहीं जनाब!
अग़यारियों हदबंदियों में ज़िदगी नहीं ।
लत है मुहब्बतों की मुझे बेहिसाब दें ,
‘ज़ाहिद’ तो शौकिया हूं मैं पैदाइशी नहीं।
31.10.11
लत है मुहब्बतों की मुझे बेहिसाब दें ,
ReplyDelete‘ज़ाहिद’ तो शौकिया हूं मैं पैदाइशी नहीं।
बहुत ख़ूब !!
लेकिन जनाब २ रचनाओं के बीच का वक़्फ़ा बहुत ज़्यादा हो जाता है और पाठक मुन्तज़िर रहता है नए कलाम का लिहाज़ा अगली ग़ज़ल उम्मीद है जल्दी मिलेगी पढ़ने के लिये
लत है मुहब्बतों की मुझे बेहिसाब दें ,
ReplyDelete‘ज़ाहिद’ तो शौकिया हूं मैं पैदाइशी नहीं।
क्या बात है. बहुत खूब.
इस्मत ज़ैदी साहिबा !
ReplyDeleteआदाब!!
इस अजीमतरीन हौसला अफ़जाई का हजारहा शुक्रिया।
इंतज़ार और बेचैनियों से मैं भी घिरा हुआ रहता हूं कि कैसे वक्त निकालूं और आप जैसे आलिमोहुनरमंद सख्शियतों के बीच होने का फ़क्र हासिल करूं । पर क्या करूं..देर हो हो जाती है...
वैसे सोच ही रहा था कि जल्दज़जल्द दो तीन पेशकस कर दूं ताकि भरपाई हो सके।
आपका हुक्म सर आंखों पर।
रचना जी!
ReplyDeleteआदाब!
हौसला अफ़जाई का शुक्रिया।
गुलज़ार आरज़ी है ये, गुल तोड़ना मना ,
ReplyDeleteतफ़रीहगाह शहर है रिहायसी नहीं।
क़ुदरत मुमानिअत का मदरसा नहीं जनाब!
अग़यारियों हदबंदियों में ज़िदगी नहीं ।
Bahut khoob!
बहुत खूब कही जाहिद साहब आपने!!
ReplyDeleteहंसता नहीं हूं बेसबब, बेवक़्त, हरजगह,
ReplyDeleteदिल का कोई हुनर मिरा फ़रमाइशी नहीं।
वाह वाह...उम्दा शेर
बढ़ती गई जो धूप तो मैं भी सिमट गया,
भड़की तपन से चाहता रस्सा्कशी नहीं।
बेहतरीन ग़ज़ल...बधाई.
हंसता नहीं हूं बेसबब, बेवक़्त, हरजगह,
ReplyDeleteदिल का कोई हुनर मिरा फ़रमाइशी नहीं।
लत है मुहब्बतों की मुझे बेहिसाब दें ,
‘ज़ाहिद’ तो शौकिया हूं मैं पैदाइशी नहीं
सुभान अल्लाह...ये आपकी हसीनतम ग़ज़लों में से एक है...ढेरों दाद कबूल करें.
नीरज
क्षमाजी, नीरज भाई , शहिद भाई, सुलभ जी,
ReplyDeleteइस कदर हौसले बुलंद करने का शुक्रिया।
बढ़ती गई जो धूप तो मैं भी सिमट गया,
ReplyDeleteभड़की तपन से चाहता रस्सा्कशी नहीं।
बहुत खूब!
शुभकामनाएं!
हंसता नहीं हूं बेसबब, बेवक़्त, हरजगह,
ReplyDeleteदिल का कोई हुनर मिरा फ़रमाइशी नहीं ...
वाह .... गज़ब का शेर है जाहिद साहब ... लाजवाब है पूरी गज़ल ...
behad umda ghazal....
ReplyDeleteसाहब !!
ReplyDeleteसुभानअल्लाह!
माशाअल्लाह!!
किसी चमत्कार और आविष्कार को उर्दू में जिन जिन शब्दों के बाद 'अल्लाह' लगाकर कहा जाता है वे सब अल्लाह!
क्या ग़ज़ब की शायरी और करते हैं आप। दुनिया के किसी भी शायर ने आज तक इश्क को ऐसी लानत नहीं भेजी होगी। आप क्या इंकलाबी शायर हैं?
चुंधिया गया साहब।
बहुत ही उम्दा
ReplyDeleteGyan Darpan
Matrimonial Site
गज़ब..
ReplyDeleteवाह जनाब....वाह.
ReplyDeleteदाद कबूल करें.