सुबह जगाने आ जाती है, मुस्काती, मुंहबोली धूप।
कभी आलता, कभी अल्पना, लगती कभी रंगोली धूप।।
धुंधों कोहरों के सब कपड़े, जाने कहां उतारे हैं ,
चुंधिआई आंखों के आगे, नहा रही है भोली धूप।।
अंजुरी में भरकर शैफाली, कभी मोंगरे, कभी गुलाब,
कमरे में खुश्बू फैलाती है फूलों की डोली धूप।।
अगहन की अल्हड़ गोरी है, है पुआल यह पूसों की,
सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप।।
आंगन आंगन जलते चूल्हे, आंगन आंगन पकते रूप,
आंगन आंगन करती फिरती, खुलकर हंसी ठिठौली धूप।।
उसका चेहरा बहुत दिनों से देख नहीं पाया हूं मैं,
आज हथेली पर रख ली है मैंने कौली कौली धूप।।
खेतों की है लुक्का छुप्पी, पेड़ों की है धूम धड़ाम,
‘ज़ाहिद’ से ही झीना झपटी करती धौली धौली धूप।।
कौली कौली - नर्म नर्म, (खासकर ताज़ा कोंपलों, फूलों सब्जियों या वनस्पतियों के लिए)
धौली धौली - उजली, सफेद सफ्फाक,
19-11-11
KHOOBSOORAT GHAZAL HAI SIR
ReplyDeleteTARAHI MISRE PAR GIRAH BHI AAP NE KHOOB LAGAAI
WAAH !!
Behad sundar,pyaree gazal hai!
ReplyDeletebahut khoobsoorat , kauli kauli shabd ka meaning bataaiye ..
ReplyDeleteधुंधों कोहरों के सब कपड़े, जाने कहां उतारे हैं ,
ReplyDeleteचुंधिआई आंखों के आगे, नहा रही है भोली धूप।।
अगहन की अल्हड़ गोरी है, है पुआल यह पूसों की,
सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप।।
उसका चेहरा बहुत दिनों से देख नहीं पाया हूं मैं,
आज हथेली पर रख ली है मैंने कौली कौली धूप।।
उफ्फ्फ...सुभान अल्लाह...कुमार जैदी साहब...बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने....ढेरों दाद कबूल करें
नीरज
Sharda Arora asked -kauli kauli shabd ka meaning bataaiye ..
ReplyDeleteZahid's answer at post :
कौली कौली - नर्म नर्म, (खासकर ताज़ा कोंपलों, फूलों, सब्जियों या वनस्पतियों के लिए)
सुबह की गुनगुनाती धूप का सुंदर वर्णन॥
ReplyDeleteek khoobsurat aur yaadgaar gazal ke liye
ReplyDeletebahut bahut mubarakbaad qubool kareiN
har sher 'dhoop' ke sang-sang hi raks karta huaa khud ko padhvaa rahaa hai ...
आंगन आंगन जलते चूल्हे, आंगन आंगन पकते रूप,
आंगन आंगन करती फिरती, खुलकर हंसी ठिठौली धूप
wa a ah !!
बहुत सुन्दर और मनभावन.
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत गजल..
ReplyDeleteधूप को लेकर बहुत ही उम्दा ग़ज़ल लिखी है आपने, सभी शे'र लाजवाब हैं।
ReplyDeleteमधुर!
ReplyDeleteधुंधों कोहरों के सब कपड़े, जाने कहां उतारे हैं ,
ReplyDeleteचुंधिआई आंखों के आगे, नहा रही है भोली धूप।।
Beautiful Personification!!
The qualities are beutifully transfered >
Vaah .... Lajawab gazal hai Kumaar Ji ... Har sher kamaal ka ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteisrat sahiba , kshama mam , sharda ji, neeraj bhai,cm prasad ji,danish sahib, mm arvind ji, amrita ji,smart sir,devi nangrani ji aur digamber nasva ji!
ReplyDeleteaap sab ka tahedil se shukriya k aap sabne is ghazal ke khoobsurat hisson per apni behad pyari aur bebak teep dee hai.
devi nangrani ji has given very special,couragious and analytical comment on the very beautiful personification of dhoop.
very very cordial thanks to all of you.
zahid ji...man se rangon ka bikhrna kabhi hi hota hai........bahut hi khoobsurat!
ReplyDeleteMan se, man ki bhi manchahi, manmani aur manhaari kabhi kabhi hi ho paati hai...
ReplyDeleteTheek kehati hain aap Parul!
वाह.....बहुत खूबसूरत गज़ल...
ReplyDeleteवाकई दिल खुश हो गया...
आपके ब्लॉग पर आना एक शानदार दावत होगी...
vidya ji, Shukriya!!
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