Friday, October 23, 2009

सुबह का पता

ठहरी हुई है रात , सुबह का पता नहीं ।
कोई कहीं है बात , सुबह का पता नहीं ।

अंधी हुई हैं हलचलें ,गूंगी हैं हसरतें ,
कैसे मिले निजात , सुबह का पता नहीं ।

जिसकी हथेलियों की हिना ख्वाबदार थी ,
गुमसुम है वो हयात , सुबह का पता नहीं ।

खुद को चढ़ा लिया है सलीबों में आदतन ,
अच्छे नहीं हालात , सुबह का पता नहीं ।

जब्तोसुकूं से दूर हैं ’जाहिद’ के रात दिन ,
जख्मी हुए ज़ज़्बात , सुबह का पता नहीं ।
050805.241009

5 comments:

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    हिन्दी ब्लागर!

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  3. ठहरी हुई है रात , सुबह का पता नहीं ।
    कोई कहीं है बात , सुबह का पता नहीं ।

    बहुत खूब....!!

    अंधी हुई हैं हलचलें ,गूंगी हैं हसरतें ,
    कैसे मिले निजात , सुबह का पता नहीं ।


    बहुत सुंदर जाहिद जी सुबह जरुर आएगी पता करते रहे यूँ ही .....!!

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  4. हरकीरत जी ,
    नज़रेकरम का शुक्रिया , आपकी प्रतिक्रिया से पौ फट चुकी है......यह भोर बनी रहे यही इल्तिजा है,

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