ठहरी हुई है रात , सुबह का पता नहीं ।
कोई कहीं है बात , सुबह का पता नहीं ।
अंधी हुई हैं हलचलें ,गूंगी हैं हसरतें ,
कैसे मिले निजात , सुबह का पता नहीं ।
जिसकी हथेलियों की हिना ख्वाबदार थी ,
गुमसुम है वो हयात , सुबह का पता नहीं ।
खुद को चढ़ा लिया है सलीबों में आदतन ,
अच्छे नहीं हालात , सुबह का पता नहीं ।
जब्तोसुकूं से दूर हैं ’जाहिद’ के रात दिन ,
जख्मी हुए ज़ज़्बात , सुबह का पता नहीं ।
050805.241009
Friday, October 23, 2009
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ReplyDeleteयह आपके बहुत काम लायक हो सकता है :)
हिन्दी ब्लागर!
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ठहरी हुई है रात , सुबह का पता नहीं ।
ReplyDeleteकोई कहीं है बात , सुबह का पता नहीं ।
बहुत खूब....!!
अंधी हुई हैं हलचलें ,गूंगी हैं हसरतें ,
कैसे मिले निजात , सुबह का पता नहीं ।
बहुत सुंदर जाहिद जी सुबह जरुर आएगी पता करते रहे यूँ ही .....!!
हरकीरत जी ,
ReplyDeleteनज़रेकरम का शुक्रिया , आपकी प्रतिक्रिया से पौ फट चुकी है......यह भोर बनी रहे यही इल्तिजा है,
ye achhi kahi baat, subah ka pata nahi
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