खुद को यूं आजमा के देख लिया
तुझको अपना बना के देख लिया
रात के बाद दिन भी आता है
जागी रातें बिता के देख लिया
सैकड़ों फूल रोशनी के खिले
किसने चिलमन हटा के देख लिया
उसका दामन न उसके हाथ में है
लाख आंसू बहा के देख लिया
रोते रोते यूं हंस पड़ा ‘ज़ाहिद’
जैसे सब कुछ लुटा के देख लिया
Wednesday, December 16, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
behatareen.
ReplyDeleteखुद को यूं आजमा के देख लिया
ReplyDeleteतुझको अपना बना के देख लिया
bahut khoob bahut achchhi rachna
रोते रोते यूं हंस पड़ा ‘ज़ाहिद’
ReplyDeleteजैसे सब कुछ लुटा के देख लिया
Waah! kya baat hai!
रात के बाद दिन भी आता है
ReplyDeleteजागी रातें बिता के देख लिया
सैकड़ों फूल रोशनी के खिले
किसने चिलमन हटा के देख लिया
behad ashavadi drishtikon . Achchhi baat.
उसका दामन न उसके हाथ में है
ReplyDeleteलाख आंसू बहा के देख लिया
Wahwwahh!
सैकड़ों फूल रोशनी के खिले
ReplyDeleteकिसने चिलमन हटा के देख लिया
हमेशा की तरह एक बेहतरीन ग़ज़ल
उसका दामन न उसके हाथ में है
ReplyDeleteलाख आंसू बहा के देख लिया
रोते रोते यूं हंस पड़ा ‘ज़ाहिद’
जैसे सब कुछ लुटा के देख लिया
waah! waah!! waah!!!!!
Kya khoob kaha hai!Waah!
sadagi ..sanjidagi ..waah!
phir aayungee aap ki baqi ghazalen padhne.
ReplyDeleteabhaar.