विश्व क्या है रूप का जंजाल
एक ही मुख दूसरे की ढाल
चौंध मुस्कानों की बांधे है
कस रही मायावी अपना जाल
देखकर चेहरा पढ़ोगे क्या
है त्रिपुण्डों से पुता जब भाल
इधर से घुसना निकल जाना उधर
नए युग की जटिलतम है चाल
सच कसाई का गंडासा है
खींच लेगा एक दिन जो खाल
काट पाया कब कोई कैसे
क्या कहें कितना कठिनतम काल
रोशनी जो कम करे मन की
मत कभी ऐसे अंधेरे पाल
लोग तो झांकी में उलझे हैं
आरती को और थोड़ा टाल
एक मुट्ठी राख अनुभव की
कर गई ‘ज़ाहिद’ को मालामाल
261096
Sunday, December 27, 2009
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कुमार ज़ाहिद साहब, आदाब
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर पहली बार आया हूं, यहां आकर काफी अच्छा लगा.
अपनी रचनाओं में विभिन्न मुद्दों को सटीक शब्दों में पेश किया है आपने
बधाई स्वीकार करें..
नये साल की शुभकामनाओं सहित
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
सच कसाई का गंडासा है
ReplyDeleteखींच लेगा एक दिन जो खाल
बहुत बेहतरीन भाव बधाई
waah !
ReplyDeletehindi ka bahut shadar sadupyog ..
shukriya doston aadab!
ReplyDeleteकाट पाया कब कोई कैसे
ReplyDeleteक्या कहें कितना कठिनतम काल
रोशनी जो कम करे मन की
मत कभी ऐसे अंधेरे पाल
लोग तो झांकी में उलझे हैं
आरती को और थोड़ा टाल
एक मुट्ठी राख अनुभव की
कर गई ‘ज़ाहिद’ को मालामाल
raushni ji km kare dil ki
ReplyDeletemt kabhi aise andhere paal
waah-wa !!
bahut hi kaamyaab
aur bakamaal sher kahaa hai janaab
baaqi sher bhi bahut achhe haiN
lekin ye sher bahut zyaada pasand aya
b a d h a a e e .
muaaf kijiye...
ReplyDeleteoopar 'ji' ki jagah 'jo' padheiN
behatareen , lajawaab, ek hi nahin sabhi sher, dheron badhaai.
ReplyDeleteविश्व क्या है रूप का जंजाल
ReplyDeleteएक ही मुख दूसरे की ढाल
चौंध मुस्कानों की बांधे है
कस रही मायावी अपना जाल
waah waah waah kamaal hai kamaal ,umda
इधर से घुसना निकल जाना उधर
ReplyDeleteनए युग की जटिलतम है चाल
.... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!
bahut achchee abhvyakti.
ReplyDeleteabhi do ghazalen padhin to yah different mood ki magar achchee lagi.
जाहिद जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!