Sunday, December 27, 2009

क्या कहें कितना कठिनतम काल

विश्व क्या है रूप का जंजाल
एक ही मुख दूसरे की ढाल

चौंध मुस्कानों की बांधे है
कस रही मायावी अपना जाल

देखकर चेहरा पढ़ोगे क्या
है त्रिपुण्डों से पुता जब भाल

इधर से घुसना निकल जाना उधर
नए युग की जटिलतम है चाल

सच कसाई का गंडासा है
खींच लेगा एक दिन जो खाल

काट पाया कब कोई कैसे
क्या कहें कितना कठिनतम काल

रोशनी जो कम करे मन की
मत कभी ऐसे अंधेरे पाल

लोग तो झांकी में उलझे हैं
आरती को और थोड़ा टाल

एक मुट्ठी राख अनुभव की
कर गई ‘ज़ाहिद’ को मालामाल

261096

12 comments:

  1. कुमार ज़ाहिद साहब, आदाब
    आपके ब्लाग पर पहली बार आया हूं, यहां आकर काफी अच्छा लगा.
    अपनी रचनाओं में विभिन्न मुद्दों को सटीक शब्दों में पेश किया है आपने
    बधाई स्वीकार करें..
    नये साल की शुभकामनाओं सहित
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  2. सच कसाई का गंडासा है
    खींच लेगा एक दिन जो खाल

    बहुत बेहतरीन भाव बधाई

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  3. waah !
    hindi ka bahut shadar sadupyog ..

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  4. काट पाया कब कोई कैसे
    क्या कहें कितना कठिनतम काल

    रोशनी जो कम करे मन की
    मत कभी ऐसे अंधेरे पाल

    लोग तो झांकी में उलझे हैं
    आरती को और थोड़ा टाल

    एक मुट्ठी राख अनुभव की
    कर गई ‘ज़ाहिद’ को मालामाल

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  5. raushni ji km kare dil ki
    mt kabhi aise andhere paal

    waah-wa !!
    bahut hi kaamyaab
    aur bakamaal sher kahaa hai janaab
    baaqi sher bhi bahut achhe haiN
    lekin ye sher bahut zyaada pasand aya
    b a d h a a e e .

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  6. muaaf kijiye...
    oopar 'ji' ki jagah 'jo' padheiN

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  7. behatareen , lajawaab, ek hi nahin sabhi sher, dheron badhaai.

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  8. विश्व क्या है रूप का जंजाल
    एक ही मुख दूसरे की ढाल

    चौंध मुस्कानों की बांधे है
    कस रही मायावी अपना जाल
    waah waah waah kamaal hai kamaal ,umda

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  9. इधर से घुसना निकल जाना उधर
    नए युग की जटिलतम है चाल
    .... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!

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  10. bahut achchee abhvyakti.

    abhi do ghazalen padhin to yah different mood ki magar achchee lagi.

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  11. जाहिद जी
    बहुत सुन्दर!!

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