Wednesday, December 2, 2009

इक बोसा दस्तख़त सा

बेरंग किया गया-सा सफ़र मिल गया मुझे
ख़त पर टिकट नहीं था मगर मिल गया मुझे

सरगोशियां खंढर में उड़ रहीं थीं गर्द सी
घर हादसे में ढेर था पर मिल गया मुझे

मां ने कहा था देगा घनी छांव ,मीठे फल
सड़के बनीं तो उखड़ा शज़र मिल गया मुझे

इक सोते के पानी में झुका प्यास बुझाने
कंधें से हटाया हुआ सर मिल गया मुझे

ज़ाहिद जबीं थी कोई रसीदी टिकट न थी
इक बोसा दस्तख़त सा किधर मिल गया मुझे

× कुमार ज़ाहिद , 151109

8 comments:

  1. मां ने कहा था देगा घनी छांव ,मीठे फल
    सड़के बनीं तो उखड़ा शज़र मिल गया मुझे

    bahut khoob.

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  2. सरगोशियां खंढर में उड़ रहीं थीं गर्द सी
    घर हादसे में ढेर था पर मिल गया मुझे
    मां ने कहा था देगा घनी छांव ,मीठे फल
    सड़के बनीं तो उखड़ा शज़र मिल गया मुझे
    वाह क्या लाजवाब कही बहुत बहुत बधाई

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  3. मां ने कहा था देगा घनी छांव ,मीठे फल
    सड़के बनीं तो उखड़ा शज़र मिल गया मुझे

    bahut khoob.

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  4. बेरंग किया गया-सा सफ़र मिल गया मुझे
    ख़त पर टिकट नहीं था मगर मिल गया मुझे

    सरगोशियां खंढर में उड़ रहीं थीं गर्द सी
    घर हादसे में ढेर था पर मिल गया मुझे
    अजी जनाब क्या कुछ लिख दिया है कुछ कहते नहीं बन रहा है बधाई स्वीकारें

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  5. बेरंग किया गया-सा सफ़र मिल गया मुझे
    ख़त पर टिकट नहीं था मगर मिल गया मुझे

    वाह ..बधाई इस बेरंग ख़त की ....!!

    इक सोते के पानी में झुका प्यास बुझाने
    कंधें से हटाया हुआ सर मिल गया मुझे

    अच्छा....इन्सान का था या .....????

    कुमार जाहिद जी कोशिश तो रहती है सभी के घर दस्तक दूँ नाराज़गी नहीं है कोई .....!!

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  6. इक सोते के पानी में झुका प्यास बुझाने
    कंधें से हटाया हुआ सर मिल गया मुझे

    ज़ाहिद जबीं थी कोई रसीदी टिकट न थी
    इक बोसा दस्तख़त सा किधर मिल गया मुझे

    सोते पर झुकना और जो सर कंधा से दूर जा पड़ा था उसका मिलना....और प्यार कोइ्र रसीदी टिकट का अनुबंध नहीं है यह सोच ! निस्संदेह लाजवाब ग़ज़ल.... बधाइयां।

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  7. सरगोशियां खंढर में उड़ रहीं थीं गर्द सी
    घर हादसे में ढेर था पर मिल गया मुझे.......waah

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  8. सरगोशियां खंढर में उड़ रहीं थीं गर्द सी
    घर हादसे में ढेर था पर मिल गया मुझे
    bahut hi jaandaar panktiyaan ,dil ko chhu gayi

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