बेरंग किया गया-सा सफ़र मिल गया मुझे
ख़त पर टिकट नहीं था मगर मिल गया मुझे
सरगोशियां खंढर में उड़ रहीं थीं गर्द सी
घर हादसे में ढेर था पर मिल गया मुझे
मां ने कहा था देगा घनी छांव ,मीठे फल
सड़के बनीं तो उखड़ा शज़र मिल गया मुझे
इक सोते के पानी में झुका प्यास बुझाने
कंधें से हटाया हुआ सर मिल गया मुझे
ज़ाहिद जबीं थी कोई रसीदी टिकट न थी
इक बोसा दस्तख़त सा किधर मिल गया मुझे
× कुमार ज़ाहिद , 151109
Wednesday, December 2, 2009
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मां ने कहा था देगा घनी छांव ,मीठे फल
ReplyDeleteसड़के बनीं तो उखड़ा शज़र मिल गया मुझे
bahut khoob.
सरगोशियां खंढर में उड़ रहीं थीं गर्द सी
ReplyDeleteघर हादसे में ढेर था पर मिल गया मुझे
मां ने कहा था देगा घनी छांव ,मीठे फल
सड़के बनीं तो उखड़ा शज़र मिल गया मुझे
वाह क्या लाजवाब कही बहुत बहुत बधाई
मां ने कहा था देगा घनी छांव ,मीठे फल
ReplyDeleteसड़के बनीं तो उखड़ा शज़र मिल गया मुझे
bahut khoob.
बेरंग किया गया-सा सफ़र मिल गया मुझे
ReplyDeleteख़त पर टिकट नहीं था मगर मिल गया मुझे
सरगोशियां खंढर में उड़ रहीं थीं गर्द सी
घर हादसे में ढेर था पर मिल गया मुझे
अजी जनाब क्या कुछ लिख दिया है कुछ कहते नहीं बन रहा है बधाई स्वीकारें
बेरंग किया गया-सा सफ़र मिल गया मुझे
ReplyDeleteख़त पर टिकट नहीं था मगर मिल गया मुझे
वाह ..बधाई इस बेरंग ख़त की ....!!
इक सोते के पानी में झुका प्यास बुझाने
कंधें से हटाया हुआ सर मिल गया मुझे
अच्छा....इन्सान का था या .....????
कुमार जाहिद जी कोशिश तो रहती है सभी के घर दस्तक दूँ नाराज़गी नहीं है कोई .....!!
इक सोते के पानी में झुका प्यास बुझाने
ReplyDeleteकंधें से हटाया हुआ सर मिल गया मुझे
ज़ाहिद जबीं थी कोई रसीदी टिकट न थी
इक बोसा दस्तख़त सा किधर मिल गया मुझे
सोते पर झुकना और जो सर कंधा से दूर जा पड़ा था उसका मिलना....और प्यार कोइ्र रसीदी टिकट का अनुबंध नहीं है यह सोच ! निस्संदेह लाजवाब ग़ज़ल.... बधाइयां।
सरगोशियां खंढर में उड़ रहीं थीं गर्द सी
ReplyDeleteघर हादसे में ढेर था पर मिल गया मुझे.......waah
सरगोशियां खंढर में उड़ रहीं थीं गर्द सी
ReplyDeleteघर हादसे में ढेर था पर मिल गया मुझे
bahut hi jaandaar panktiyaan ,dil ko chhu gayi