10.10.10. की शुभकामनाओं के साथ...
हक़ीम हो के जो दवा मांगे
गो कि तूफान भी हवा मांगे ।/1/
दिल मेरा चांद सितारे मांगे
मांग बेज़ा सही ,रवा मांगे ।/2/
रात की नीमजान खामोशी
गूंगे आकाश से सबा मांगे ।/3/
मेरी तन्हाइयों की परछाईं-
मेरी मायूसियां ,वबा मांगे ।/4/
चल किसी मोड़ पर चराग़ रखें
फ़िक्र में ख्वाहिशें कबा मांगे ।/5/
दुखती रग पर न कोई हाथ रखे
यक़ीन टूटे हैं ,ख़बा मांगे ।/6/
आज ‘ज़ाहिद’ से क्यों उमीदेवफ़ा
भूली बिसरी हुई नवा मांगे ? ।/7/
01.08.10
शब्दावली
बेज़ा = अपूरणीय , अनुचित ,
रवा = बजा , उचित , ठीक
सबा = सुबह की सुगंधित हवा, प्रातःसमीर ,
नीमजान = अर्द्धप्राण , अधमरी ,
वबा = महामारी ,क़यामत ,
कबा = चोगा , अंगरखा ,
ख़ौफ़ = भय , डर , अंदेशे
खबा = छुपाना ,गोपनीयता, एकांत
नवा = आवाज़, सदा ,
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बहुत कमाल की गज़ल हिन्दी मे शब्दों के अर्थ सोने पर सुहागा। हर एक शेर काबिले तारीफ है। बधाई।
ReplyDeleteचल किसी मोड़ पर चराग़ रखें
ReplyDeleteफ़िक्र में ख्वाहिशें कबा मांगे...
सबसे खूबसूरत शेर लगा है...
और...
रात की नीमजान खामोशी
गूंगे आकाश से सबा मांगे...
उम्दा...मुबारकबाद.
चल किसी मोड़ पर चराग़ रखें
ReplyDeleteफ़िक्र में ख्वाहिशें कबा मांगे.
वाह! वाह! बहुत ही बढ़िया !
'रात की नीमजान खामोशी
गूंगे आकाश से सबा मांगे '
यह शेर बहुत पसंद आया.
बेहतरीन ग़ज़ल .
चल किसी मोड़ पर चराग़ रखें
ReplyDeleteफ़िक्र में ख्वाहिशें कबा मांगे...
दुखती रग पर न कोई हाथ रखे
यक़ीन टूटे हैं ,ख़बा मांगे ।/6/
bahut khoob zahid sahaab....
Ek behad umda ghazal hui hai...sabhi sher shandar hain...matla kamal hai...
ReplyDeleteहकीम होके जो दवा मांगे,
ReplyDeleteगो के तूफ़ान भी हवा मांगे।
बेहद उम्दा ग़ज़ल ...मुबारकबाद।
बहुत सुन्दर लिखा है , हर शेर पर दाद देते हैं , किसी किसी मोड़ पर चराग रखने में आप कामयाब हुए है ...
ReplyDeleteustad ji...kya khoob likha hai...beautiful..beautiful!
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब है ..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना...क्या बात है.. वाह...मज़ा आ गया..
ReplyDeleteयूँ ही लिखते रहें...
मेरे ब्लॉग में इस बार..
हक़ीम हो के जो दवा मांगे
ReplyDeleteगो कि तूफान भी हवा मांगे ..
बहुत ही बेहतरेन ... क्या ग़ज़ब के शेर निकाले हैं ... और ये मतला तो जान खींच रहा है .... लाजवाब .....
बहुत उम्दा गज़ल !
ReplyDeleteमेरी तन्हाइयों की परछाईं-
मेरी मायूसियां ,वबा मांगे ।
चल किसी मोड़ पर चराग़ रखें
फ़िक्र में ख्वाहिशें कबा मांगे
क्या बात है ! वाह !
waah !
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल लाजवाब .....
ReplyDeleteदिल मेरा चांद सितारे मांगे
ReplyDeleteमांग बेज़ा सही ,रवा मांगे ।
चल किसी मोड़ पर चराग़ रखें
फ़िक्र में ख्वाहिशें कबा मांगे ।
दुखती रग पर न कोई हाथ रखे
यक़ीन टूटे हैं ,ख़बा मांगे ।
आज ‘ज़ाहिद’ से क्यों उमीदेवफ़ा
भूली बिसरी हुई नवा मांगे ? ।
जाहिद साहब! कमाल है।
कहते है तो यूं ही नहीं कहते हैं लोग कि
जाहिद का है अंदाजेबयां और !!
(चचा गालिब की जगह आपका नाम है मगर तारीफ के लिए कोई और न सूझा)
रात की नीमजान खामोशी
ReplyDeleteगूंगे आकाश से सबा मांगे ।
kya khub likha hai.yun hi likhte rahen.shubhkamnayen.
nice poem,
ReplyDeletehope u find me at utkarsh-meyar.blogspot.com