आज गुरुनानक जयंती है ।
हिन्दुस्तान के तमाम उन लोगों को जो संतों की परम्परा पर आस्था रखते है इस पूर्णिमा पर साधुवाद!
आज ही बन आई यह ग़ज़ल आपकी नजर है
रात मर जाता सुबह जीता हूं ।
मैं अंधेरों के ज़हर पीता हूं ।
सिर्फ़ मासूम हिरन हैं पल-छिन
मैं समय हूं सतर्क चीता हूं ।
ज़र्रे ख़्वाबों के फुलाते फुग्गे
सच की सूई हूं मैं फजीता हूं
आग चूल्हों की सावधान रहे
घोषणाओं का मैं पलीता हूं
समाईं शहरों में झीलें सारी
मैं हूं जलकुंड मगर रीता हूं
आख़री सांस में सुनते क्यों हो
मैं तो कर्मों से भरी गीता हूं
हार ‘ज़ाहिद’ पै डालकर खुश हूं
जिसकी हर हार से मैं जीता हूं
02.11.09 ,गुरुनानक जयंती
ज़हर - जितने किस्म के अंघेरे, ज़हर उतने ,यानी ज़हर भी बहुवचनों में..इसलिए अंधेरों के ज़हर
फजीता - फ़ज़ीहत ही बोलचाल में,लोकशैली में फजीता हो गया है, अर्थ वही अपमान,परेशानी,मुसीबत...
Sunday, November 1, 2009
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best.behatareen rachna.
ReplyDeleteBehtareen gazal....sachmuch
ReplyDeleteमशकूर .....धन्यवाद!
ReplyDeleteरात मर जाता सुबह जीता हूं ।
ReplyDeleteमैं अंधेरों के ज़हर पीता हूं ।
बहुत खूब ......!!
(मुझे लगता है ' अंधेरों का ' होना चाहिए ...देखें )
ये 'फजीता ' का अर्थ भी लिख देते तो आसानी होती .....!!
हरकीरतजी आदाब,
ReplyDeleteमैं आपकी दोनों समझाइस का सम्मान करता हूं ज़हर को
‘ज़हरात’ कह सकूं इसलिए कारक ‘के’ का इस्तेमाल किया।
फ़जीहत को ही लोकशैली , रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में बिला नुक़्ता ‘फजीता ’ कहते हैं..
कवियों को मिलनेवाली छूट का फ़ायदा उठाने की कोशिश की है...देखते है कहां तक स्वीकार होता है.....आपसे ग़ुस्ताख़ी मुआफ़...
सारे शेर ,पूरी गजल उद्देश्यपूर्ण है। नया अंदाज नयी परिभाषाएं, नये बिंब और प्रतीक...अंदर कितनी कसमसाहट है , सुजन की कितनी बेचैनी है ! प्रभावशाली गजल
ReplyDeleteबधाई
समाईं शहरों में झीलें सारी
ReplyDeleteमैं हूं जलकुंड मगर रीता हूं
BEHATAREEN