जो दिल ही नहीं लेते हैं अक्सर जान लेते हैं
उन्हें हम बारहा दिल से दिलोजां मान लेते हैं
ये गुल गुलशन ये शहरों की हंसीं रंगीनियां सारी
ये चादर नींद में ख्वाबों की है , हम तान लेते हैं
कभी खुलकर नहीं रोती ,कभी शिकवा नहीं करती
अंधेरे में सिसकती मां को हम पहचान लेते हैं
किसे मंज़िल नहीं मिलती किसे रस्ता नहीं मिलता
सुना है मिलता है सब कुछ अगर हम ठान लेते हैं
इन्हीं गलियों में मिलते हैं कभी इंसां कभी शैतां
कि हम बंजारा हैं सारा इलाक़ा छान लेते हैं
सुनारों की दुकां के सामने अक्सर उन्हें देखा
वो सुनझर1 हैं जो कचरे से ही सोना खान 2 लेते हैं
शहरवालों के दिल में क्या पता ‘ज़ाहिद’ बसा क्या है
वो मंडी के लिए बंजर नहीं दहकान 3 लेते हैं
× कुमार ज़ाहिद , 131109.
1. सुनझर या सोनझर का अर्थ सोना गलानेवाली आदिवासी जाति जो सोने का काम होनेवाली दूकानों के सामने से कचरा उठाकर उसे गलाकर सोना निकालते हैं ।
2. खानना यानी खोजना , ढूंढना । 3. दहकान यानी खेत ,
Sunday, November 22, 2009
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behatareen.
ReplyDeletewaah padhkar behad khusi hui ,shaandar gazal
ReplyDeletewaah
ReplyDeleteBehad sundar rachna!
ReplyDeletehttp://kavitasbyshama.blogspot.com
http://shamasansmaran.blogspot.com
जो दिल ही नहीं लेते हैं अक्सर जान लेते हैं
ReplyDeleteउन्हें हम बारहा दिल से दिलोजां मान लेते हैं
har baat bemisaal is karan aana pada phir dobara
किसे मंज़िल नहीं मिलती किसे रस्ता नहीं मिलता
ReplyDeleteसुना है मिलता है सब कुछ अगर हम ठान लेते हैं
इन्हीं गलियों में मिलते हैं कभी इंसां कभी शैतां
कि हम बंजारा हैं सारा इलाक़ा छान लेते हैं
सुनारों की दुकां के सामने अक्सर उन्हें देखा
वो सुनझर1 हैं जो कचरे से ही सोना खान 2 लेते हैं
शहरवालों के दिल में क्या पता ‘ज़ाहिद’ बसा क्या है
वो मंडी के लिए बंजर नहीं दहकान 3 लेते हैं
umda khyalon ki maheen qaseedakari.
new experiments with reality.