उसने सोच समझकर तै की जगह मेरी दीवानों में
हल्के फुल्के ऊपर रख्खे मुझे रखा तहख़ानों में
दिल की बातें कह सकते गर घर में मंदिर मस्ज़िद में
बोलों फिर क्या कहने जाते जले जिगर मयख़ानों में
उल्टी पुल्टी दिखती दुनिया जब जब होश में रहते हैं
पीकर कोई नुख्श न दिखता बाज़ारू पैमानों में
कभी गिरेबां नाप रहे तो कभी हथेली चूम रहे
ऊपर नीचे हो ही जाते हैं पलड़े मीज़ानों में
प्यार मोहब्बत बेघर बेदर शहर इज़ारेदारों का
आंसू भरे सरों की ख़ातिर जगह नहीं है सानों में
जीस्त ये ढाई लफ़्ज़ों की है मगर बोलियों में गुम है
मोल भाव है नीलामी है मज़हब के उन्वानों में
झूम रही हो सबकी हस्ती मस्ती हो जब सबके पास
होश की बातें की तो ‘ज़ाहिद’ ख़ैर नहीं रिन्दानों में
goodfriday 170492/061109
Thursday, November 19, 2009
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वाह वाह जाहिद जी बहुत खूब पूरी गज़ल लाजवाब है बधाई
ReplyDeleteदिल की बातें कह सकते गर घर में मंदिर मस्ज़िद में
ReplyDeleteबोलों फिर क्या कहने जाते जले जिगर मयख़ानों में
बेहतर....
दिल की बातें कह सकते गर घर में मंदिर मस्ज़िद में
ReplyDeleteबोलों फिर क्या कहने जाते जले जिगर मयख़ानों में
bahut khoob....
कमाल की पंक्तियां बहुत सुन्दर !!!!!
ReplyDeleteदिल की बातें कह सकते गर घर में मंदिर मस्ज़िद में
ReplyDeleteबोलों फिर क्या कहने जाते जले जिगर मयख़ानों में
wah wa!!
आप सभी को धन्यवाद है साहिबान !
ReplyDeleteप्यार मोहब्बत बेघर बेदर शहर इज़ारेदारों का
ReplyDeleteआंसू भरे सरों की ख़ातिर जगह नहीं है सानों में
जीस्त ये ढाई लफ़्ज़ों की है मगर बोलियों में गुम है
मोल भाव है नीलामी है मज़हब के उन्वानों में
ghazab hai janab..behad asardar ghazal..vahvah.