नज़रें चुरा रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !
कतरा के जा रहे है वो , यानी नज़र में हूं !
जिनसे कभी नहीं मिले उनसे ही मिल रहे ,
मिलकर जला रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !
जिस पल्लू में क़समों की गांठ है मिरे खि़लाफ़ ,
उसको झुला रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !
किस पर गिरेगी बिजली फ़िज़ा में है खलबली ,
मेघों-से छा रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !
उनकी हथेलियों में क़त्ल की लकीर है ,
मेंहदी रचा रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !
080609.
Friday, November 13, 2009
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बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है .... खूबसूरत अहसासों को बेहतरीन शब्द दिए हैं आपने
ReplyDeletewah
ReplyDeleteउनकी हथेलियों में क़त्ल की लकीर है ,
मेंहदी रचा रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !
behatareen.
shobhit g
ReplyDeleteyogesh g
bahut bahut dhanyavad.
जिस पल्लू में क़समों की गांठ है मिरे खि़लाफ़ ,
ReplyDeleteउसको झुला रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !
wah janab ! pallu mein qasmon ki ganth..naya aur umda prog hai
उनकी हथेलियों में क़त्ल की लकीर है ,
मेंहदी रचा रहे हैं वो , यानी नज़र में हूं !
great sir...innovation inthe field of sblimity I think..nazumiyon ke liye ek naya rasta apne bana diya aur mehandi ko qatl se jodkar to kamal hi kar diya aapne..nice mubaraq..